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बरस रहा है पानी

अमृतसर की गलियों में

मिट्टी के साथ बहने लगता है अचानक ख़ून

सजे-धजे शानदार घोड़े

आकर खड़े हो जाते हैं मंदिर के सामने

छप-छप की आवाज़ होती है

खुर उनके ख़ून में सने हैं

कीचड़ में धँसने लग पड़ते हैं घोड़े

फिर कर्फ़्यू से सूनी गलियों में जाने कहाँ भाग जाते हैं

पुतलीघर के बड़े फाटक के सूराख़ से

झाँकता लड़का

चिल्लाता है

माँ, घोड़े चले गए हैं खेतों की तरफ़

एक पुरानी हवेली के बंद कमरों में

वह लड़का कुछ देख नहीं पाता

अनगिनत जवान लड़के जो आज मारे गए

उन्होंने भी अपने बचपन में

हवेलियों के अँधेरे कमरों में छिपकर

चीख़ने और मारे जाने की आवाज़ें सुनी थीं

ताज़े मक्खन में बासी रोटी को

सुबह वे जब निगल रहे होते थे

शिखर धूप में तब

हर रोज़ मारा जाता था

कोई कोई अपने ही घर का एक जवान।

स्रोत :
  • रचनाकार : विनोद भारद्वाज
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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