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गले नहीं उतरता

gale nahin utarta

रामजी तिवारी

रामजी तिवारी

गले नहीं उतरता

रामजी तिवारी

और अधिकरामजी तिवारी

    आँकड़े बन गए लोगों के आँकड़े

    अब नुकीले हो गए हैं,

    टँगी हुई है जिन पर मुल्क की अस्मत

    वे ऐसी कीलें हो गए हैं।

    फिर इतने साफ़ तथ्य

    नहीं उतरते जिनके गले में

    वे आख़िर कौन हैं...?

    क्या उग आए हैं उनमें सुविधा के काँटे

    वे इसीलिए मौन हैं...?

    सुना है इनके गले में

    माँ-बाप तक फँसे हुए हैं,

    चुभ रहे हैं भाई-बहन

    मित्र-रिश्तेदार भी धँसे हुए हैं।

    फिर वह क्या होगा

    जिसे ये अपने गले में निगलते होंगे...?

    कुछ तो जाता होगा इनके भीतर

    जिसके सहारे चलते होंगे।

    एक मित्र कहता है

    कि वही उतरता है इनके गले में

    जो चिकना हो जितना कि मैनहटन,

    चढ़कर इस देश के कंधे पर भाग जाएँ जहाँ

    दिन-रात करते हैं ये जतन।

    लेकिन उनके गले में तो

    यह दुनिया ही फँसी हुई है,

    जिस दिन वे उगल देंगे

    उस दिन पता चलेगा

    कि आपकी जड़ें इनमें

    कितनी कम धँसी हुई हैं।

    इसलिए साफ़ कीजिए अपने गले को

    जिसमें उतर सकें इस देश के लोग भी,

    क्योंकि वे ही तो ऑक्सीजन हैं

    जो फेफड़ों में भरकर ठीक कर देंगे

    आपका यह असाध्य रोग भी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रामजी तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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