गहराते हुए
gahrate hue
एक
चट्टान के नीचे बहता पहाड़ी झरना
अभी तक
दे रहा है स्वर!
आकाश को इतना मुखर मैंने
कभी नहीं देखा!
एक गहरी तंद्रा में बीत गई है शताब्दी अब
उम्र का
अर्थ उसकी समझ में
कम ही आता है : उसे झकझोरने,
जगाने, उम्र का अर्थ बताने की फ़ुर्सत
किसी के पास नहीं है :
पहाड़ी झरना बहता है आकाश को
लीलता हुआ और
उसकी तंद्रा
गहराती जा रही है!
दो
उँगलियों के पोरों में अज्ञात स्पंदन है : सनसनाहट
पूरे जिस्म को खोलना शुरू कर देती है!
मुझे आश्चर्य है कि
पूरा देश
मेरी उँगली का पोर बन गया है :
स्पंदित!
और
पूरा जिस्म
महाकाश :
नीला, गहरा और अथाह बहाव में
पिघला हुआ आकार।
जिस्म को तराशने के तरीक़े इतने नए और
अपरिचित हो सकते हैं। यह बार-बार एक चुप्पी को
लेकर आता है।
उँगलियों के पोरों में अज्ञात स्पंदन है
और
पूरा जिस्म
अपने ढाँचे से खुल रहा है! मशीन के
पुर्ज़ों जैसे : पूरा जिस्म!
- पुस्तक : सोच को दृष्टि दो (पृष्ठ 119)
- रचनाकार : मोना गुलाटी
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