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फ़ितरत

fitrat

मुकेश कुमार सिन्हा

और अधिकमुकेश कुमार सिन्हा

    मान लो 'आग'

    टाटा नमक के

    आयोडाइज्ड पैक्ड थैली की तरह

    खुले आम बिकती बाज़ार में

    मान लो 'दर्द'

    वैक्सड माचिस के डिब्बी की तरह

    पनवाड़ी के दूकान पर मिलती

    अठन्नी में एक!

    मान लो 'ख़ुशियाँ' मिलती

    समुद्री लहरों के साथ मुफ़्त में

    कंडीशन एप्लाय के साथ कि

    हर उछलते ज्वार के साथ आती

    तो लौट भी जाती भाटा के साथ

    मान लो 'दोस्ती' होती

    लंबी, ऐंठन वाली जूट के रस्सी जैसी

    मिलती मीटर में माप कर

    जिसको करते तैयार

    भावों और अहसासों के रेशे से

    ताकि कह सकते कि

    किसी के आँखों में झाँककर

    मेरी दोस्ती है सौ मीटर लंबी

    छोड़ो, मानते रहो

    क्यूँकि, फिर भी, हम

    हम ठहरे साहूकार

    आग की नमकीन थैली में

    दर्द की तीली घिस कर

    सीली ज़िंदगी जलाने की

    कोशिश में ख़र्च कर देते है

    पर, नहीं चाहते तब भी

    कमर में दोस्ती की रस्सी बाँध

    समुद्री लहरों पर थिरकना

    ख़ुशियाँ समेटना, खिलखिलाना

    ख़ैर, दोस्त-दोस्ती भी तो

    माँगने लगी है इनदिनों

    फेस पाउडर की गुलाबी चमक

    जो उतर ही जाती है

    एक खिसियाहट भरी सच्चाई से

    सीलन की दहन

    बंधन की थिरकन

    नामुमकिन है सहन

    आख़िर यही तो है इंसानी फ़ितरत

    ...है न!

    स्रोत :
    • रचनाकार : मुकेश कुमार सिन्हा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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