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फ़तह

fataha

लड़की हूँ कोई लकड़ी नहीं

जो चूल्हे में तारी जाऊँ।

मेरी कोख, महीने मेरे

मैं ही क्यों मारी जाऊँ?

सावित्री, फ़ातिमा की बेटी हूँ

क़लम से सब पर भारी जाऊँ।

पांडवों की द्रौपदी नहीं

जो जुए में हारी जाऊँ।

मैं फुले की सावित्री हूँ

ज्ञान संग ब्याही जाऊँ।

स्वीकार नहीं देवी होना

कि पतिव्रता पुकारी जाऊँ।

मैं पाथर नहीं अहिल्या-सी

जो पुरुष पाँव से तारी जाऊँ।

उनसे कह दो आदत बदलें

मैं कब तक बदलती सारी जाऊँ।

मैं आज की सावित्री फुले हूँ

फ़ातिमाओं पर वारी जाऊँ।

लड़की हूँ कोई लकड़ी नहीं

जो चूल्हे में तारी जाऊँ...

स्रोत :
  • रचनाकार : बच्चा लाल 'उन्मेष'
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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