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बहनों का कमरा

bahnon ka kamra

गार्गी मिश्र

गार्गी मिश्र

बहनों का कमरा

गार्गी मिश्र

और अधिकगार्गी मिश्र

    ग्रीष्म के दिनों में वे ऐसे रहतीं

    जैसे काले गहरे और अँधेरे से भरे बिल में रहते हैं जानवर

    भोजन से भरे पेट वे सोतीं और हवाई सपनों से उड़ते उनके बाल

    किसी महल की तीसरी छत पर लगी पताका को हवा देते

    किसी के हँसने की आवाज़ आती

    कोई इशारे से खिड़कियों पर लगे पर्दे को हटाने को कहती

    कोई अपने पाँव के नाख़ून से पर्दे का धागा खींच देती

    कोई ज़ोर की उबासी ले कर एक गिलास पानी माँगती

    और पानी का गिलास थमाते हुए

    सबसे कम उम्र अपने बाल पीछे की ओर उड़ा देती

    एक बार फिर हवा का रुख़ तेज़ हो जाता

    जो महल की पताका को उड़ा कर समंदर में बहा ले जाता

    इस तरह शाम हो जाती

    और वे शाम की सैर पर बाहर निकल जातीं

    वे हँसतीं और हँसतीं ही जातीं

    एक दूसरे से जानवरों का-सा प्यार करने वाली वे बहनें जानी जातीं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : गार्गी मिश्र
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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