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एक संभाव्य भूमिका

ek sambhawya bhumika

फणीश्वरनाथ रेणु

फणीश्वरनाथ रेणु

एक संभाव्य भूमिका

फणीश्वरनाथ रेणु

और अधिकफणीश्वरनाथ रेणु

    आपने दस वर्ष हमें और दिए

    बड़ी अनुकंपा की!

    हम नतशिर हैं!

    हममे तो आस्था है : कृतज्ञ होते

    हमें डर नहीं लगता कि उखड़ जाएँ कहीं!

    दस वर्ष और!

    पूरी एक पीढ़ी!

    कौन सत्य अविकल रूप में

    जी सका है अधिक?

    अवश्य आप हँस ले :

    हँसकर देखें फिर साक्ष्य इतिहास का

    जिसकी दुहाई आप देते हैं।

    बुद्ध के महाभिनिष्क्रमण को

    कितने हुए थे दिन

    ठैर महासभा जब जुटी ये खोजने कि

    सत्य तथागत का

    कौन-कौन मत-संप्रदायों में बिला गया?

    और ईसा—

    (जिनका कि पटशिष्य ने

    मरने से कुछ क्षण पूर्व ही था कर दिया

    प्रत्याख्यान!)

    जिस मनुपुत्र के लिए थे शूल [सूली] पर चढ़े—

    उसे जब होश हुआ सत्य उनका खोजने का

    तब कोई चारा ही उसका चला

    इसके सिवा कि वह खड्गहस्त

    दसियों शताब्दियों तक

    अपने पड़ोसियों के गले काटता चले

    (प्यार करो अपने पड़ोसियों को आत्मवत्—

    कहा था मसीहा ने!)

    ‘सत्य क्या है?’ बेसिनिन में पानी मँगा लीजिए

    सूली का सुनाके हुकुम

    हाथ धोए जाएँगे!

    बुद्ध : ईसा : दूर हैं

    जिसका थपेड़ा हमको लगे वह

    कैसा इतिहास है?

    ठीक है!

    आपका जो ‘गांधीयन’ सत्य है

    उसका क्या यही सात-आठ वर्ष पहले

    गांधी पहचानते थे?

    तुलना नहीं है ये। हमको चर्राया नहीं

    शौक़ मसीहाई का।

    सत्य का सुरभिपूर्ण स्पर्श हमें मिल जाए—

    क्षण-भर :

    एक क्षण उसके आलोक से संपृक्त हो

    विभोर हम हो सकें।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कवि रेणु कहे (पृष्ठ 57)
    • संपादक : भारत यायावर
    • रचनाकार : फणीश्वरनाथ रेणु
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 1988

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