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एक पेड़

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सुजाता गुप्ता

और अधिकसुजाता गुप्ता

    गालियाँ दो

    ख़ूब कोसो

    पेड़ को गिराने के लिए

    कमज़ोरिया गिनाओ उसकी

    ख़ूबियों को लाल रँग दो

    उकसाओ बार-बार

    कि फूट पड़े धीरे-धीरे

    बोली बूँद-बूँद

    शाखाओं में फिसलने लगेगी

    टप्प-टप्प

    जड़ों में रिसती जाएगी

    ज़मीन से आसमान तक फैल जाएगी

    देखते ही देखते

    ग़श खाकर गिर जाएगा किसी पहर

    मिट्टी उखाड़ देगा फर्राटे से

    आत्मा धम्म गिर पड़ेगी

    वहीं फैल समा जाएगी

    आह की परछाई है सागर

    गहरा स्वाद

    दुःख की चरम सीमा है।

    एक भोज का प्रबंध होगा

    (वास्तव में तेरहवीं)

    गप्पे हाँकी जाएँगी गुच्छों में

    चटखारे लिए जाएँगे

    हिसाब होगा मेहनत का

    बोली की गुणवत्ता का

    बनेगें मुँह मियाँ मिट्ठू

    ठहाकों से श्रद्धांजलि होगी

    गिनती अगले की फिर

    धार पर चढ़ाई जाएँगी तलवारें

    एक और मेहनत के हिसाब के लिए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सुजाता गुप्ता
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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