जिसकी गर्दन के पीछे से झाँकता सूरज ढल चुका है
धरती की फटी हथेली से उगा वह कुंद फोड़ा
अब नीला पड़ गया है विष पी कर
कितने अवसाद कितनी सदियों के प्रश्न जी कर
वह खड़ा है अकेला जब सब जा चुके हैं
लौट चुका है प्रश्नाकुल दिन का उजाड़ संन्यासिन रात की कोख में
ओस की दीमक धीरे-धीरे घोल रही है उसकी चट्टानी हड्डियों को
खोपड़ी की कोटर में दो आँखें सपनीली-सी मगर
डूबी हुई हैं स्वप्न में सितारों के पार
एक समझौता दुखों से है
समझौता यह दुख का दुखों से
जीवन की जीवन में आहुति मृत्यु के सनातन यज्ञ में
जीवन तिलक लगाता है मृत्यु के ललाट पर
शुभ लिखता है उसके माथे पर
शोध अथक अस्तित्व का जीवन की मिट रही लकीरों पर
उसे थामे रहता है
ज्ञान अकेला कर चुका है उसे अलग अपनी व्याप्ति में
और विष पी कर वह नीला धूसर शांत है
उसकी तहों में उठ रही लहर अभी अधूरी है
ज्ञान भी ज्ञान नहीं है अभी
अनुभूतियाँ बदलेंगी उसका रूप
सब जा चुके हैं
वह खड़ा है अकेला
धरती की हथेली से उगा कुंद फोड़ा
यह किस दुख का पहाड़ है?
यह किस पहाड़ का दुख है?
उसकी पीठ पर लदा है संसार एक
उल्टे पड़े बासी बरतनों के निरर्थक औचित्य-सा
वही उम्मीदें हैं वही निराशा कुंठा भी वही है
जब चाँद यह आकाश की स्लेट पर उजाला लिख रहा है
वह खोजता है राग जीवन से
उसमें अस्थियाँ हैं विसर्जित पूर्वजों की
उसमें बसती हैं कल्पनाएँ निर्वात अशरीरी
वह बारिश की अँगुलियों से गीत लिखता है हवा में
कराहता है दुःस्वप्नों की नींद में
राग-विराग के बीच दुक्खों का सफर
तापता तराशता है उसे
संघर्षों के संस्मरण में
ज्ञान और सत्य आपस में घुल जाते हैं
गहराती बेला में
गूढ़ हो जाता है
धरती की फटी तलहथी से उगा यह कुंद फोड़ा।
- रचनाकार : तुषार धवल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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