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एक मुद्दत के बाद

ek muddat ke baad

अनुवाद : रामसिंह चाहल

हरभजन सिंह हलवारवी

हरभजन  सिंह हलवारवी

एक मुद्दत के बाद

हरभजन सिंह हलवारवी

और अधिकहरभजन सिंह हलवारवी

    एक मुद्दत के लंबे अंतराल के बाद

    जब कोई आता है

    घर की दहलीज़ आगे बिछ जाती है

    निःसंकोच स्नेह भरा स्वागतम,

    जिस पर अंकित हो जाता है

    पुरातन लिपि जैसा

    आने वाले के क़दमों का सूक्ष्म स्पर्श

    एक मुद्दत के बाद जब कोई आता है

    बढ़ जाती है

    घर की दीवारों में फैली हुई मद्धिम-सी रोशनी

    नज़रों में एक-से-एक हँसी दिखाई देती है

    उसके वज़ूद की तरह फैलती है

    बाहों में लेकर एक छोटा-सा चुंबन लेती है

    और वापस लौटना भूल जाती है

    एक मुद्दत के बाद जब कोई आता है

    हवा में सुलगती तपिश की तल्ख़ी

    तुरंत अंतर-ध्यान हो जाती है

    एक ठंडा-सा अहसास सीने से आकर

    उसके बालों में अंगुलियाँ फेरता है

    और अंगुलियाँ फेरता मस्ती में सोता है

    एक मुद्दत के बाद जब कोई आता है

    तो मानो साफ़ आसमां से

    रात भर ओस टपकती है

    और धरती में से

    हरी कचूर घास फूटती है

    हरी घास को ‘सूरजमुखी’ का सपना आता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : ओ पंखुरी (पृष्ठ 54)
    • रचनाकार : हरभजन हलवार्वी
    • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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