रूठकर सब कोशिकाओं से
देह में वह भागती फिरती
सबको मारती पत्थर
एक कोशा हो गई पागल
वह देह के भीतर
अलग से देह रचना चाहती है
चाहती है अलग अपना ख़ून
अलग अपना माँस
अपनी नसें
अपनी नाड़ियाँ
अपनी अलग आँगन बाड़ियाँ
बिन नाक नक़्शे का
अचानक उभरता है एक बीहड़
लुटेरे रोज़ आते हैं
गाँव सारे काँप झुरमुटों में
पल रहा वर्षों पुराना विष
बाहर निकलकर
मारता है डंक
- पुस्तक : खोजो तो बेटी पापा कहाँ हैं (पृष्ठ 23)
- रचनाकार : ध्रुव शुक्ल
- प्रकाशन : वाग्देवी प्रकाशन
- संस्करण : 1989
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.