हालाँकि ख़त का चलन अब बहुत कम हो गया है
फिर भी तुम्हें बिसरे ताम्रपत्र की तरह एक ख़त लिखना चाहता हूँ
नए तरीक़े का वज़नदार ख़त
सफ़ेद काग़ज़ पर सफ़ेद स्याही वाली कलम से
मैं लिखूँगा और तुम ही पढ़ सकोगे उसे
बाक़ी लोगों के लिए वह महज़ कोरा काग़ज़ ही होगा
कि पढ़ी जा सकने वाली लिखी हुई चीज़ें
ख़ूब मिटाई गई हैं इधर
कि अब गिनती से पहले
पहाड़ा लिखना सिखाया जाने लगा है
पहाड़े में अगले ही चरण पर
कोई भारी-भरकम संख्या आ जाती है अचानक,
इसीलिए लिखूँगा कि सस्पेंस और ग्लैमर से दूर ही रहना...
डाक बक्से में उस चिट्ठी को डालना मुनासिब होगा क्या!
उस पर तुम्हारा पता भी तो सफ़ेद स्याही से ही लिखा होगा
डाकिया उसे ग़ैर-पते वाली चिट्ठी समझकर कूड़े में तो नहीं फेंक देगा
कितनी ही आशंकाएँ उपजती हैं मुझमें
एक ख़त लिखूँ, यह सोचने मात्र से पहले
लिखूँगा ख़त में कि आशंकाएँ ही अब हमारी एकमात्र मार्गदर्शक पुस्तकें हैं
फिर भी, इनसे मार्गदर्शन नहीं लेना है हमें!
उसमें लिखूँगा कि तलछट की शक्ल वाले मेरे बुख़ार का
दिन भर की मेहनत या भागदौड़ से
या फिर धूप से भी कोई संबंध नहीं
अंत में लिखूँगा
कि थोड़ा लिखा है, ज़्यादा समझना
समझना तो लिखना वापस
एक जवाबी ख़त
जिसे पढ़कर मेरे अंदर की हरीतिमा नई कोंपल हो जाए।
- रचनाकार : प्रांजल धर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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