अभी कुछ दिन पहले तक
इस घर में
रहती थी एक स्त्री
उस स्त्री ने
इस घर को बनाया था घर
उस स्त्री से
यह घर लगता था घर
वह स्त्री
बुहारती थी ये घर
हर वस्तु को रखती थी
निश्चित जगह पर
हर वस्तु अपनी जगह पर थी
हर व्यक्ति अपनी जगह पर
न वस्तु लावारिस थी न व्यक्ति
वह स्त्री भरती थी पानी
घर का एक-एक बर्तन
पहचानता था उसे
वह स्त्री पकाती थी खाना
घर में महक रहती थी
सौंधी रोटियों की
स्वादिष्ट सब्ज़ियों और अचार की
वह स्त्री जानती थी कि कौन कब खाएगा
कौन क्या खाएगा
वह स्त्री धोती थी कपड़े
वह जानती थी
किस कपड़े की उम्र कितनी है
वह जानती थी
किस कपड़े पर लगाना है टाँका
किस पैंट के टूट गए हैं बटन
वह स्त्री थी तो घर था
घर में आते थे मेहमान
उसे मालूम था एक-एक रिश्ता
उस स्त्री से था एक समाज
उस स्त्री को याद थे
इस घर के पूर्वजों के नाम
वह स्त्री निकालती थी
पूर्वजों के श्राद्ध
वह स्त्री बनाती थी
दीवारों पर अल्पना
उस स्त्री को याद थे
तिथियाँ और त्यौहार
वह स्त्री बच्चों को
सुनाती थी कहानियाँ
कोई नहीं जानता था
वह स्त्री बीमार थी
कई वर्षों से
उस स्त्री ने
कभी नहीं बताया
वह थक जाती है बहुत जल्दी
उसकी उठने लगी है साँस
वह स्त्री सोचती थी
अगर उसका चलेगा इलाज
उसे खानी पड़ेंगी दवाइयाँ
ये घर कैसे चलेगा
लोगों को समय पर
खाना कैसे मिलेगा
समय पर सब कैसे जाएँगे काम पर
गर वह पड़ गई खाट पर
वह स्त्री सोचती थी
सिर्फ़ घर के विषय में
एक दिन नहीं रही वह स्त्री
घर में उठी चीत्कार
आए सभी रिश्तेदार
औरतों ने नहलाया उसे
ओढ़ा दी लाल चुनरी
वह स्त्री निकली घर की देहरी के बाहर
मर्दों के कंधों पर
बच्चों ने किया रुदन
विस्मित भयभीत देखते रहे
उस स्त्री को जाते हुए
घर में शोक
दीवारों में सन्नाटा था
एक स्त्री के बग़ैर
- रचनाकार : गोविंद माथुर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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