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गर्द

gard

आतम हमराही

और अधिकआतम हमराही

    गर्द को बहुत फ़ख़्र है कि वह

    मलिन भावना की फैलाई अफ़वाह-सी

    हवा के पंखों पर सवार

    अनायास ही

    सुंदरतम चेहरों और सृष्टि पर बैठती है

    नैन-नक़्श की सुंदरता को

    लगाती है ग्रहण

    आकर्षण को

    मैल की तहों के नीचे छिपाती है

    ताकि

    निंदकों की भड़की शेख़ी को

    तनिक शांति मिले

    गर्द को इन निंदकों और अफ़वाहों की तरह

    अपनी कार्यकुशलता

    पर बहुत फ़ख़्र और फ़रेबी गुमान रहता है

    गर्द भी उड़ती है हर रोज़

    और निंदकों की हाँडी के

    किनारे जलते हैं प्रतिदिन

    लेकिन उनका दुर्भाग्य कि गुणों के स्वच्छ चेहरे

    फिर भी चमकते हैं हर रोज़

    निंदकों को उनकी उड़ाई गर्द के

    नसीब का ध्यान नहीं रहता

    जिसे चेहरा चमकाने, साफ़ होने पर

    नालियों में बह जाना पड़ता है

    लेकिन गर्द नहीं रहती

    अपनी प्रतिभा दिखाए बिना

    विवश है वह

    सत्य का सौंदर्य तो

    फिर से चेहरा धोकर मुस्कुरा छोड़ता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 268)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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