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दूसरा पहाड़

dusra pahaD

जगदीश स्वामीनाथन

जगदीश स्वामीनाथन

दूसरा पहाड़

जगदीश स्वामीनाथन

और अधिकजगदीश स्वामीनाथन

    यह जो सामने पहाड़ है

    इसके पीछे एक और पहाड़ है

    जो दिखाई नहीं देता

    धार-धार चढ़ जाओ इसके ऊपर

    राणा के कोट तक

    और वहाँ से पार झाँको

    तो भी नहीं

    कभी-कभी जैसे

    यह पहाड़

    धुंध में दुबक जाता है

    और फिर चुपके से

    अपनी जगह लौटकर ऐसे थिर हो जाता है

    मानो कहीं गया ही हो

    —देखो

    वैसे ही आकाश को थामे खड़े हैं दयार

    वैसे ही चमक रही है घराट की छत

    वैसे ही बिछी हैं मक्की की पीली चादरें

    और डिंगली में पूँछ हिलाते डंगर

    ज्यों-के-त्यों बने हैं, ठूँठ-सा बैठा है चरवाहा

    आप कहते हैं, वह पहाड़ भी

    वैसे ही धुंध में लुपका है, उबर जाएगा

    अजी ज़रा आकाश को तो देखो

    कितना निम्मल है

    कहीं धुंध कोहरा जंगल के ऊपर अटकी

    कोई बादल की फुही

    वह पहाड़ दिखाई नहीं देता महाराज

    उस पहाड़ में गूजरों का एक पड़ाव है

    वह भी दिखाई नहीं देता

    गूजर, काली पोशाक तनी

    कमर वाली उनकी औरतें

    उनके मवेशी, झबड़े कुत्ते

    रात में जिनकी आँखें

    अंगारों-सी धधकती हैं

    इस पहाड़ के पीछे जो वादी है महाराज

    वह वादी नहीं, उस पहाड़ की चुप्पी है

    जो बघेरे की तरह घात लगाए बैठा है

    स्रोत :
    • पुस्तक : स्वामीनाथन : एक जीवनी (पृष्ठ 169)
    • रचनाकार : प्रयाग शुक्ल
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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