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दूरी बरतने की चेतावनी : कोरोना

duri baratne ki chetawni ha korona

श्रद्धा आढ़ा

श्रद्धा आढ़ा

दूरी बरतने की चेतावनी : कोरोना

श्रद्धा आढ़ा

और अधिकश्रद्धा आढ़ा

    प्रकटाने को दीप तमस में उत्सुक सदैव हाथ हों ज़रूरी नहीं।

    हाँ मगर!

    जलता घरौंदा देख किसी का होने पाए कलेजा ठंडा,

    उजास की ख़ातिर बस इतनी संवेदनाएँ बचाए रख लें।

    गौ की, श्वान की पहली रोटी, चुग्गा चिड़ी का कण कीड़ी को

    दे सकें तो दें।

    हाँ मगर!

    अनाज कूड़ेदान में गर्क करते,

    भूसे से खाद्य बटोरते बालक का स्मरण भूलने पाए,

    इतनी सी संवेदनाएँ बचाए रख लें अर्पण के लिए।

    मातम के रुदन को मृदुता का लेप लगाना पुण्य है।

    हाँ मगर!

    अनजान रुदन पर ठिठक जाए कान, संगीत रोक सकें अपना,

    इतनी संवेदनाएँ तो बचाए रख लें मरहम के लिए।

    लड़खड़ा के गिर गया कोई जो धूल में, वहीं पड़ा नहीं रहेगा

    झाड़ धूल उठ खड़ा फिर होगा।

    गिरे पर अट्टहासों का शोर मचाएँ, चोंचें मार सताएँ,

    बस इतनी संवेदनाएँ बचाए रख लें सम्बल के लिए।

    ठहर क्षण भर पार राह करवा सकें तो क्या बात है।

    हाँ मगर!

    राह में रोड़े जो अटकाएँ, अनजान को भटकाएँ

    बस इतनी संवेदनाएँ बचाएँ रख लें दिशाओं के लिए।

    जिस रोज़ विटप पनपेगा संवेदनाओं का

    यक़ीनन उस रोज़ प्रकृति भी मानव को मानव से दूरी बरतने की

    सलाह और चेतावनी देना बंद कर देगी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : अभी सफ़र में हूँ (पृष्ठ 42)
    • रचनाकार : श्रद्धा आढ़ा
    • प्रकाशन : बोधि प्रकाशन
    • संस्करण : 2021

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