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दुपहर

duphar

शिव कुमार गांधी

और अधिकशिव कुमार गांधी

    आसमान में बिखरे सफ़ेद बादलों के नीचे सड़क पर गाड़ियाँ जा रही हैं

    सड़क के पार पटरियाँ है उस पार घास पर भेड़े जा रही हैं झुंड में

    कुछ काली बकरियों के साथ, पार के बंगलों की क़तारों के नीचे

    एक अलग आती भेड़ का पीछा करता हुआ एक छोटा लड़का पार करता है पटरियाँ

    सामने से आता हुआ साइकिल सवार देखे जा रहा है मुझे सिगरेट पीते हुए

    मेरे ऊपर झुका हुआ है एक गुलमोहर का पेड़ और उसके ऊपर

    चित्र जैसे लगने वाले बादल के सफ़ेद टुकड़े

    मैं ख़ुद को दिखता हुआ अपने भीतर के कुएँ में

    पानी की तलाश में

    आसमान के बादल से इच्छा करूँ थोड़े-से पानी की

    देखते हुए साइकिल सवार की एक फ़ोटो ले लूँ

    पटरी से पार आते हुए लड़के को थोड़ी देर अपने पास बैठा लूँ

    उसकी आँखों में देखूँ

    पूछूँ उसकी प्यास के बारें में और भेड़ो के झुंड में बकरियों के व्यवहार के बारें में, पूछूँ उससे सामने की बिल्डिंग में दिखाई दे रही बालकनी की पीली दीवार पर भूरे रंग की खिड़की और उसके आगे रखे पौधे के बारें में कि बकरियाँ उस पौधे को कैसे देखती होंगी

    और बालकनी वाली बिल्डिंग के बारें में वह क्या सोचता होगा?

    पीली दीवार का पीला जो सफ़ेद भेड़ पर भी है सफ़ेद बादल के पीछे सूरज में से झाँकता पीला, जिस आदमी की मैं फ़ोटो लेना चाहता हूँ उसकी आँखों में के पीले से मिलता-जुलता है

    जैसे कि पटरियों का कालापन सड़क और बकरियों के कालेपन से

    और घास गुलमोहर का हरापन मेरे भीतर के कुएँ के आस-पास उग आई खरपतवार से,

    जो कि बेरंग-सी हवा के थोड़ा-सा भी सिहरने से काँप उठती है मेरे ही कुएँ की जगत पर मुझे घायल करती हुई

    अब मैं किसे दिखाऊँ कुएँ का आयतन और कँपकँपाहट, क्यूँ दिखाऊँ,

    दुपहर थोड़ा जल्दी ढलो...

    स्रोत :
    • रचनाकार : शिव कुमार गांधी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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