कौन समझता है सुंदरता सपने-सी ग़ायब हो जाती?
इन अधरों के लिए—गुलाबी औ' अभिमानी और मातमी—
एक महानगरी मसान की चिता की तरह
एक लपट में भस्म हो गई,
कितने ही वीरों ने अपने प्राण गँवाए!—
अधर मातमी हैं कि नया आश्चर्यजनक कुछ
होना संभव नहीं रह गया।
जिस प्रकार सागर के तल पर लहरें उठ-दब
नव लहरों को जगह बराबर देती रहतीं,
उसी प्रकार गगन के फेन सितारों की आँखों के नीचे
हम गुज़रे जाते हैं,
दुनिया जद्दोजहद की गुज़री जाती,
किंतु मनुष्यों के नयनों में
वह एकाकी सुंदर सूरत
उसी तरह से बसी हुई है
जैसे पहले बसी हुई थी।
स्वर्दूतो, हो जहाँ कहीं भी, अपने मंद-ज्योति बासों में,
उसके आगे शीश झुकाओ।
तुमसे पहले, किसी सजग प्राणी के पहले,
सुंदरता कोमल-तन, विथकित
प्रभु के सिंहासन के आगे विनत खड़ी थी;
प्रभु ने यह संसार बनाया,
जब सुंदरता पाँव बढ़ाए,
दूब-हरा पथ बनकर वह आगे बिछ जाए!
- पुस्तक : मरकत द्वीप का स्वर (पृष्ठ 29)
- रचनाकार : विलियम बटलर येट्स
- प्रकाशन : राजपाल एंड संस
- संस्करण : 1965
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