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दुःस्वप्न

duःswapn

मोना गुलाटी

मोना गुलाटी

दुःस्वप्न

मोना गुलाटी

और अधिकमोना गुलाटी

    शताब्दियों के भूखे हब्शी प्रेत डोलते हैं

    नपुंसकों और क्लीवों के देश पर। पूरा

    देश बदल जाता है केंचुओं में और निगलता है

    मिट्टी।

    मिट्टी के स्तूपों पर पड़े हैं

    लड़कियों के शव

    पर मुझे किसी हत्या का पाप नहीं लगेगा।

    सभी रोती हुई आवाज़ों की खिल्ली उड़ाकर हँसती है

    एक लड़की

    और मसीहा बनने के लिए पूरे बदन पर

    ठुकवा लेती है कीलें।

    उधड़ी हुई चमड़ी

    और बहते हुए रक्त से अभी भी रिसता है

    प्यार।

    अपना नाम लेकर चीख़ने वाली एक पागल लड़की

    तहख़ानों और सुरंगों से उतर गई है चुपचाप

    फड़फड़ाते चमगादड़ों को पकड़ने के लिए।

    घबराकर सभी सुरंगों के मुँह बंद कर दिए हैं

    मैंने

    और

    छटपटाने लगी हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : महाभिनिष्क्रमण (पृष्ठ 15)
    • रचनाकार : मोना गुलाटी

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