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सपने

sapne

कचकड़े के बंजर आईने में नहीं

अपने ख़ून की लहकती आँच में

सपने देखते हैं हम अपने बच्चों के बाबत

हरे दिन, उड़ते हुए गुलाब

और रंगीन फ़ौवारे के इर्द-गिर्द फलों की

कविता गाती चिड़ियों के साथ

आज की खिड़की मैं बैठकर हम देखते हैं

भविष्य के मायावी झरने के बीच

सतरंगी पाँचे उछालते, भींजते नन्हे हाथ

दूब वाले मैदान पर ख़रगोश के साथ

कुलाँचे भरती किलकारियों का संगीत

सुनती हैं हमारी साँस

अपने छिपे हुए आँसुओं में

बोते हुए नई फ़सल की उम्मीद से

अपनी इच्छाओं के बीज

हम सपने देखते हैं अपने बच्चों के बाबत

जानते हुए कि बिच्छुओं के डंक विषाक्त हैं

और सड़क ख़तरनाक

रोटी सेंकते हुए उस माँ का चेहरा

चमक रहा है

वह पालने में लेटी अपनी बेटी को

कहीं दूर मेहँदी की ख़ुशी में

गाते हुए देख रही है

वह पिता दफ़्तर से लौटते हुए

सोच रहा है अपने बेटे के लिए

अमलतास के नीचे गुनगुनी धूप में

उसका बेटा रंगों से खेल रहा है

खेल-खेल में रंग बदल जाते हैं

सफ़ेद वर्दी में और उसका बेटा

जहाज़ में गाते हुए दूर जा रहा है

समुद्र को नापते हुए

यह माँ चक्की पीसते हुए

एक गीत गा रही है

किसी दूसरी दुनिया में

जहाँ उसका बेटा दलिद्दर मिटा रहा है

और एक क़ायदे की दुनिया में

तनकर खड़ा है आदमी की तरह

अपनी ही छत पर फैली

कुम्हड़ की लतर को मुग्ध निहारता हुआ

यह पिता

टाइपराइटर पर दौड़ती

अपनी अँगुलियों की थकान को तोड़ते हुए

बंद आँखों के अँधेरे आकाश में

अपनी बेटी के लिए ख़रीदता है एक गुड़िया

और देखता है उसकी बेटी

गुड़िया के खेल-खेल में

राजकुमारी बन गई है

और आतिशबाज़ी के रंगों को चीरकर

शहनाई के स्वरों का उजाला

फैलने लगता है उसकी थकी आँखों में

भीख माँगते हुए

और लकड़ी काटते हुए

और सब्ज़ी लादते हुए

और कंडे थोपते हुए

इंजिन चलाते हुए

और कपड़ा बुनते हुए

एक सपना

अनकही प्रार्थनाओं में तैरता रहता है हमेशा

दुनिया के माँ-बाप की आँखों में।

स्रोत :
  • पुस्तक : जहाँ थोड़ा-सा सूर्योदय होगा (पृष्ठ 96)
  • रचनाकार : चंद्रकांत देवताले
  • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
  • संस्करण : 2008

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