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दूर नहीं

door nahin

मलय

मलय

दूर नहीं

मलय

और अधिकमलय

    हवा पेड़ों से सरसराती

    झरनों-सी शोर करती रहे

    बरसते दिन और रातों में

    भीग-भीगकर

    भारी हो जातीं साँसें

    कभी नहीं थकतीं

    ये पृथ्वी की परिक्रमाएँ

    मेरे सिर पर से

    प्रपात-सी गिरती हैं

    मैं धार में

    मित्रों से कंधे और हाथ मिलाकर

    बचने-रचने से दूर नहीं होता

    इस बेचैन उजाले में

    मैं,

    शब्दों के आर-पार होती

    किरणों में बह रहा हूँ

    स्रोत :
    • रचनाकार : मलय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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