दिनचर्या का राष्ट्रीय गान
dincharya ka rashtriya gan
औरतों ने कपड़े साफ़ कर दिए हैं
आप पहनें और सुंदर दिखें
औरतों ने खाना पका दिया है
आप खाएँ और डकार लें
औरतें गर्म दुपहर सोने चली गई हैं
उन्हें पुकार लगाएँ
आपको चाय की तलब लग रही है
औरतों ने सोफ़े की सिकुड़न
ठीक कर दी है
आप फिर से बैठ जाएँ
औरतों ने घर बुहार दिया है
और आपकी एश ट्रे गिर गई है
वे इसे फिर बुहार दें
मई का घर एक भट्टी की तरह है
आप अपनी नेकर और बंडी में रहेंगे
कपड़े औरतें पहन लेंगी
शाम का नाश्ता तैयार है
पुकार की क्या ज़रूरत है
औरतों ने डिनर पका दिया है
आप खाएँ और पेट सहलाएँ
औरतों ने चादर बिछा दी है
तकिए के ग़िलाफ़ बदल दिए हैं
आप सो जाएँ
कल सुबह ही आपको
राष्ट्रीय समस्याओं पर सोचना भी है
औरतों का क्या है
जब वे एक पूरा दिन गुज़ार सकती हैं
तो इतनी कमीनी रात भी बीत जाएगी।
- रचनाकार : सोमप्रभ
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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