संतुलन बनाती है
धरती
लगातार घूमते हुए
घूम-घूम कर देती संदेश
नाचने से आती है स्थिरता
यूँ ही नहीं कहते पुरखे
‘जे नाची से बाची’
कि नाचना भूलते जा रहे हैं हम।
संतुलन बनाती है प्रकृति
गति से
साइकिल के पहिए रुके
कि टूटी लय
जब तक गति
तब तक स्थिरता
कि गतिहीन व्यक्ति नहीं होता संतुलित।
विपक्ष रचती है पृथ्वी
स्थिरता का
जब-जब खड़ा करती
सत्ता
अपना बड़ा-सा कीर्ति-स्तंभ
धरती छोड़ देती
हथियार
चिरंतन का मज़ाक़ उड़ाने की
मानो ज़िद ठान रखी हो इसने।
धरती का भरोसेमंद हथियार हैं
दीमक
पानी जैसे भरोसे की तरह है यह सच
गतिमान को नहीं छूते दीमक
कितने सुकून की है ये बात
लोक में नहीं
सिर्फ़ शास्त्री में लगते हैं दीमक
ठहरने के ख़िलाफ़ है प्रकृति
जड़ता के सारे उपकरणों के लिए
है धरती के पास जवाब
मरे जीवों पर आक्रमण करते लाखों कीटाणु
अनुपयोगी को छाड़न बनाती जाती नदियाँ
कहती है धरती
रुके विचारों में भी लगते हैं दीमक
धरती के बेजोड़ सिपाही हैं दीमक
श्रम के घनघोर पक्षधर
लोकतंत्र के पहरेदार
खड़े रहे हैं आम जन के साथ
गति के अथक रक्षक
चुपके से कहते हैं कान में
चलते रहो... चलते रहो...
और नहीं तो पानी जैसा
खड़े खड़े बहते रहो।
- रचनाकार : प्रमोद कुमार तिवारी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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