दिल्ली ही है नहीं देश का चेहरा
dilli hi hai nahin desh ka chehra
झूठ बहुत सारे होते
सचमुच ही
सर्वांगसम नहीं होता है
कुछ भी
सांगोपांग सुनो तो
सारा किस्सा
इसमें इक चींटी का भी
है हिस्सा
नहीं अकारथ होता है
गुचगुच भी
पाओगे संवेदन
गहरे-गहरे
देखो कभी,
कलाकृतियों के चेहरे
हर रुचि को जीना होता
रुच-रुच ही
कण-कण में सूर्योदय
सजे सुनहरा
दिल्ली ही है नहीं
देश का चेहरा
हैं महत्त्व के,
भीटा और भरूच भी
- रचनाकार : यश मालवीय
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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