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धरती और आकाश

dharti aur Aakash

आलोक कुमार मिश्रा

आलोक कुमार मिश्रा

धरती और आकाश

आलोक कुमार मिश्रा

और अधिकआलोक कुमार मिश्रा

    हमारी दुनिया में कहा जाता था

    औरतों को धरती और मर्दों को आकाश।

    सो हम लड़के

    लगे ही रहते थे हमेशा

    धरती पर पैर रख आकाश को छूने में

    आकाश को पाने में

    आकाश ही होने में।

    और जब

    कर नहीं पाते थे ये सब

    झल्लाहट में कोड़ने लगते थे

    आस-पास की धरती।

    उधर हमसे अलग

    हमारी आँखों के सामने ही

    धरती में रमी

    धरती-सी ही रही लड़कियाँ

    हँसती थीं

    रोती थीं

    उगती थीं

    हरियाती थीं

    गाते हुए गीत मिल आती थीं पुरखिनियों से

    बनाकर दुखों को रस्सी वे

    अटकाती थीं उसे चाँद पर

    और झूलती थीं झूला।

    एक दिन गिरते थे औंधे मुँह

    हम लड़के

    और लोक लेती थीं लड़कियाँ

    पके आम की तरह हमें।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आलोक कुमार मिश्रा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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