लोकतंत्र का समकालीन प्रमेय

loktantr ka samkalin pramey

जितेंद्र श्रीवास्तव

जितेंद्र श्रीवास्तव

लोकतंत्र का समकालीन प्रमेय

जितेंद्र श्रीवास्तव

और अधिकजितेंद्र श्रीवास्तव

    कल अचानक मिले रूद्रपुर में जगप्रवेश

    मेरे बाल सखा

    हाफ पैंटिया यार

    मूँछों में चुकी सफ़ेदी

    खुंटियाई दाढ़ी से ताल मिला रही थी

    अब उतनी बेफ़िक्री उतना सँवरापन नहीं था

    जितना होता था नेहरू माध्यमिक विद्यालय में साथ पढ़ते हुए

    धधाकर मिले जगप्रवेश

    ख़ूब हँसे हमारे मन

    हमने याद किया अपने शिक्षकों और सहपाठियों को

    हालचाल लिया एक दूसरे के परिवार का

    और ख़ूब प्रसन्न हुए इस बात पर

    कि दोनों पिता हैं दो-दो बेटियों के

    जगप्रवेश को मालूम था मेरे बारे में

    बड़े भाई साहब ने बहुत कुछ बता दिया था उन्हें

    वे ख़ुश थे अपने मित्र की ख़ुशी में

    मैं भी कुछ-कुछ जानता था उनके बारे में

    मसलन यह कि वे ठेकेदार हैं

    एक राजनीतिक पार्टी के स्थानीय नेता हैं

    उनकी पत्नी शिक्षिका हैं

    और एक बड़ा-सा घर है शहर में उनके नाम

    बात-बात में पता लगा

    जगप्रवेश विधायक होना चाहते हैं

    उन्होंने ख़ूब धन-बल जुटाया है बीच के दिनों में

    टिकट का प्रबंध पक्का है

    उन्होंने आँकड़े इकट्ठा कर लिए हैं जातियों के

    उनकी अपनी जाति के वोट हैं ढेर सारे

    कल बहुत सारी इधर-उधर की बातें करते हुए

    जगप्रवेश ने धीरे से कहा मुस्कुराते हुए

    आपको भी मेरा साथ देना होगा भाई साहब

    हम जाति भाई नहीं लेकिन दोस्त हैं पुराने

    आपके आने से बल मिलेगा

    आपकी जाति का एकमुश्त वोट मिल जाएगा मुझे

    और मित्रो इस तरह मैं

    अचानक मित्र से एक जाति में बदल गया

    मैं अचरज में था

    कि स्कूल के दिनों में

    गणित में बेहद होशियार जगप्रवेश

    अब भाषा और रिश्तों में

    नए प्रमेय गढ़ रहा था

    मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा

    जो किसी दिन आपको भी मिले आपका कोई पुराना मित्र

    लोकतंत्र का पहरुवा बनने को उत्सुक विकल

    और धीरे से बातों ही बातों में

    आपको रूपांतरित कर दे एक जाति में।

    स्रोत :
    • रचनाकार : जितेंद्र श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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