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हत्या के लिए हमारी तैयारियाँ बेहतर थीं

बंदूक़ों में गोलियाँ थीं और दिमाग़ में योजनाएँ

साथ में लड़के थे और हत्याओं का उनका लंबा अनुभव

हमने हफ़्तों इंतज़ार किया था

अभी एक घँटे बाद जिसे मरना था

वह शहर से दूर बने एक छोटे से घर में मौज़ूद था यह हमें घरेलू सिपाही ने बताया

वह इसी बात के पैसे लेता है

अपनी गाड़ी में सवार हम सोच रहे थे वह क्या कर रहा होगा

मरने वालों की बेख़बरी पर हमें हँसी आती है

कोई आत्मा के क़रीब का कबाब खाकर तिनके से दाँत खोद रहा होता है

कोई पेशाब करता हुआ अपनी किडनियों के सुचारू रूप से काम करने पर ख़ुश हो रहा होता है

कोई बिस्तर पर नंगी पड़ी देह को फिर से बरतने के नए तरीक़े सोच रहा होता है

कोई बच्चों से दुनिया की सबसे क़ातिल पतंग दिलाने का वायदा कर रहा होता है

हम जिसके पास दबे पाँव गए वह कमरे में अकेला पलंग पर पड़ा कराह रहा था

अपनी उम्र से ज़्यादा दिख रहे उसके ज़र्द चेहरे पर दर्द था

उसने हमें अधखुली पलकों से देखा

हम ख़तरे की तरफ़ से आश्वस्त होने के लिए घर के एक-एक कोने में गए

चीज़ों को फेंककर तसल्ली की

वह लेटा हुआ बर्तनों, फूलदानों, ग्लासों का टूटना देखता रहा

तकियों और सोफ़े से उड़ती रुई उसकी हताशा पर गिर रही थी

हम बेफ़िक्र हो गए थे घर की कोई चीज़ उसके रखे मुताबिक़ नहीं थी

मैंने ज्वर से तपता उसका हाथ सहलाया अफ़ीम का पैसा कहाँ है

वह चिड़ियों-सा फुसफुसाया—

पानी

पानी कहीं नहीं था

रोटी

बर्तन ख़ाली थे

रसोई में बनी आख़िरी चीज़ खिचड़ी थी जो चार दिनों पहले बनी थी और अब कीड़ों की शरणस्थली थी

वह रोने लगा और बोला कि मर जाएगा

साथ के लड़के ने चिढ़कर कहा इसे ख़त्म करते हैं और निकलते हैं

उसके घर सत्यनारायण-कथा है

मैंने दया दिखाई

उसे बिना मारे लौट गया

बीच रास्ते साथ के लड़के ने उसे इस तरह ज़िंदा छोड़ने पर

बॉस की नाराज़गी की याद दिलाई

मैंने गाड़ी मोड़ ली

वापस उसके घर आया

उसके हाथों-पैरों को रस्सियों से बाँधा

मुँह पर डक्ट टेप चिपकाया

और दरवाज़े पर एक मज़बूत ताला मार लौट गया।

स्रोत :
  • रचनाकार : मिथिलेश प्रियदर्शी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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