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डार्विन की प्रसिद्धि के चरमकाल में

Darvin ki prasiddhi ke charamkal mein

आकृति विज्ञा 'अर्पण’

आकृति विज्ञा 'अर्पण’

डार्विन की प्रसिद्धि के चरमकाल में

आकृति विज्ञा 'अर्पण’

और अधिकआकृति विज्ञा 'अर्पण’

    डार्विन की प्रसिद्धि के चरमकाल में

    दुत्कारे गए मेंडल 

    जैसे आम के मौसम में

    कौन ढूँढे बड़हड़?

    फिर सोचती हूं

    मेंडल के जाने बाद 

    पहचाने गए मेंडल 

    और प्रतीक्षा में हूँ

    कि बच्चे बाज़ारों में ढूँढते मिलेंगे बड़हड़।

    ठीक वैसे ही जैसे कि मैं

    ढूँढती हूँ विज्ञाधर द्विवेदी के गीत,

    चूल्हाछुआई के दिन 

    गाँव की लड़कियाँ ढूँढती हैं 

    माँ की डायरी के भजन।

    और माँ बनने वाली प्रसूताएँ 

    जान लेना चाहती हैं सारे घरेलू नुस्ख़े।

    आज जब विश्वनाथ मंदिर से गुजरते 

    नज़र पड़ी बड़हड़ के ठेले पर 

    तो महसूस हुआ मैं भी हूँ एक प्रतीक्षा 

    और आम की हँसी के बीच 

    मुस्कुराता हुआ बड़हड़।

    मुझे याद आए मेंडल 

    हाँ वही Father of genetics

    लगा रही हूँ आज बड़हड़ का पेड़ 

    आम के बगीचे के बीचो-बीच।

    याद रहे हैं वो सारे लड़के

    जिन्हें होना पड़ा बड़हड़ 

    और बेचते हैं आम 

    याद रही हैं वो सारी लड़कियाँ

    जिन्हे व्याह ले गया आम 

    और चाहता रहा बड़हड़।

    कमरे में लगा दी है मेंडल की तस्वीर

    ठीक डार्विन के बगल में

    और मन में रही है एक बात 

    कि हम सब समय-समय पर हैं

    आम और बड़हड़।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आकृति विज्ञा 'अर्पण’
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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