उनके लिए जो श्वेत कुष्ठ से ग्रस्त हैं
unke liye jo shvet kushth se grast hain
अखिलेश जायसवाल
Akhilesh Jaiswal
उनके लिए जो श्वेत कुष्ठ से ग्रस्त हैं
unke liye jo shvet kushth se grast hain
Akhilesh Jaiswal
अखिलेश जायसवाल
और अधिकअखिलेश जायसवाल
उन की त्वचा के उजाले ने
उनकी पूरी ज़िंदगी में भर दिया है अँधेरा
और इतना अँधेरा कि
सचमुच उन्हें दिन के उजाले से
नफ़रत हो गई है।
वे दिन में निकलने से घबराते हैं,
अँधेरा उन्हें आश्वस्त करता है
और अपनी अँगुलियों से खोल देता है
उनके अंतर्मन की बहुत-सी कलंकित गाँठें।
और गाँठें भी ऐसी कि
ब्रह्म हत्या,गुरु हत्या, स्त्री हत्या, ईश निंदा
और दैवी प्रकोप के सामाजिक तानों की
गलफाँस से कम पेंचीदी न हों।
मान्यताओं की पंचायती खाप में
वे पूर्व जन्म के जघन्य अपराधी हैं
और समाज के पलड़े पर
भुवि भारभूता: के रूप में त्याज्य।
सौंदर्य और यौवन की स्थिरता
के सर्वाधिक प्रयोग और यंत्रणाएँ
त्वचा ने ही झेले हैं।
रक्त स्नान की पैशाचिक लाल छीटें
अभी भी ताज़ी लगती हैं
इतिहास के मध्य युगीन पन्नों पर।
समस्त कीमिया और कॉस्मेटोलोजी लगी हुई है
त्वचा की बनावट और कसावट के संवर्धन में।
एक बार फिर लौट आया है
नकली तिल और गोदना का यौन आकर्षण
अपनी प्रासंगिकता के साथ
और ज़्यादा मारक आमंत्रण क्षमता के साथ।
स्पर्शेंद्रिय ही तो रही है
स्पर्श की मसृणता का केंद्र
और सुगंधि की भेदन क्षमता का उपादान।
जहाँ इस त्वचाधर्मी समय के
अधिकाँश कार्य व्यापार
चमकते अंतस् नहीं
बल्कि चिकनी और चमकीली त्वचा के भरोसे हैं
वहीं उनको विरक्ति हो गई है
अपनी ही दागदार त्वचा से।
उनकी उजली त्वचा के नीचे से
झाँकती लाल सिराएँ
और उन पर उगे रूखे और भूरे बाल
निरायास ही विद्रूप हो जाते है
एक पथभ्रष्ट परिभाषाओं के दौर ने
जब से बदल दिए हैं
भूख के अर्थ और सौंदर्य के मानक
त्वचा ने पेट से छीनकर बना लिया है
उसकी सभी समिधाओं का उबटन।
तबसे वे और भी अकेले हो गए हैं
अपने मौलिक चेहरे के साथ
लिपे पुते चेहरों की भेड़ चाल में।
वे आँखें चुरा लेते हैं
अपने को घूरती नज़रों से,
क्यों कि सामने वाला बोले या न बोले
उसकी नज़रें तो पूछ ही लेती हैं—
कौन सा पाप किया था तूने?
वे नज़रें चुरा लेते हैं
अपनी ही नज़रों से
क्यों कि वे जब भी देखते हैं—
आइना उनके चितकबरे चेहरे में
दिखा ही देता है उनके गुनाहों का अक्स।
उनके लिए कोई अर्थ नहीं है
धरती की हरीतिमा का,
आसमान के नीलेपन का,
सुबह और साँझ के केसरिया क्षितिज का,
टेसू के फूलों की टह-टह ललाई का
और फूलों से रंग चुराती तितलियों का।
रंगों के प्रति
उनकी मानसिक वर्णांधता
इन्हें कहाँ देख पाती है
उनके लिए तो पूरी कायनात ही
केवल दो उदास रंगों से बनी है—
श्वेत और श्याम।
चिकित्सा शास्त्र ने
एक रंग भेदी रसायन को
अपराधी घोषित कर
निकाल ली है अपनी भड़ास।
सौंदर्य की वरदायिनी और कायाकल्प का दावा
करने वाली क्लिनिकों में
पहले इनकी जेबें चुकती हैं
फिर धीरे-धीरे चुक जाता है आत्म विश्वास
और छोड़ जाता है एक गहरा अवसाद।
रंगभेद और अस्पृश्यता के
समग्र उन्मूलन की क्राँति के रास्ते में
वे छूट गए ऐसे पड़ाव हैं
जिन्हें अभी भी प्रतीक्षा है
इसे नए सिरे से परिभाषित करने वाले
किसी गाँधी और टेरेसा की।
उन्हें अभी भी प्रतीक्षा है
एक बिंदास और स्नेहिल स्पर्श की।
मन की आँखों की बनिस्बत
इश्क के मेराज को हासिल करने में
अक्सर नाकामयाब रहे हैं चर्मचक्षु।
कृशाश्व का भी ब्रह्मज्ञान और सात्विक प्रेम
कहाँ लाँघ सका था
अपाला की श्वेत कुष्ठी त्वचा का अवरोध?
और कहाँ कर सका था
उसकी आत्मा के साथ अनुनाद?
इश्क़ हक़ीक़ी की ऊँचाई तक जाने का
जुनून पाल कर बैठी अनेक प्रेम कथाएँ
त्वचा की फिसलती सीढ़ियों पर ही
गिरकर तोड़ देती हैं दम।
- रचनाकार : अखिलेश जायसवाल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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