रात्रि के अंतिम प्रहर में सिंघु बॉर्डर
ratri ke antim prahar mein singhu baurDar
मनोज मल्हार
Manoj Malhar
रात्रि के अंतिम प्रहर में सिंघु बॉर्डर
ratri ke antim prahar mein singhu baurDar
Manoj Malhar
मनोज मल्हार
और अधिकमनोज मल्हार
रात्रि का अंतिम प्रहर
अँधेरे में सुराख लग चुका...
दूर तक जाती स्याह लकीर।
वाहनों के चक्कों पर
कंटीली तारों और खंदकों के साथ
टिक गई एक बस्ती,
दूर देश जाते परिंदों की डाल पात शाखें
कुछ ज़िद्दी रातें कुछ रौनकदार सुबहें।
दीवारनुमा ढाँचों पर पोस्टर।
कई झँडे हवा की ताल पर नाचते से।
पीली पगड़ी बाँधे भगत सिंह
इत्मीनान से खाट पर बैठे दिख रहे।
कहीं सुराही में पानी
कहीं कंबल के नीचे बेसुध शरीर...
कुछ लोगों की चहल-क़दमी चालू हुई...
सड़क का काला रंग धीरे-धीरे उभरता हुआ।
नज़र तीन वृद्धों पर अटक गई है।
खाट पर बैठे तीन वयोवृद्ध
एक ही दिशा में देखती छः आँखें।
गहन गंभीर चिंतनशील चेहरों पर रंगों का खेल,
काले और सफ़ेद के मध्य कश्मकश जारी है,
फ़िलहाल स्याह रंग का नियंत्रण.
आँखें उम्र की लकीरों में क़ैद...
समझ नहीं आया
ये गतिमान स्वप्न दृश्य
या किसी महाकाव्य के पन्नों से निकाल
सभ्यता के नाटकीय दृश्य में बैठा दिए गए चरित्र...
अतीत ताज़ा हो रहा है...
बूढ़े सफ़ेद किसानी लिबासों में।
अँधेरे से निकली जरा सी सफ़ेदी...
तीन पतंगें ऊँचाई पर उड़ रही बिन डोर।
...वे तीन किताबें हैं
नीर क्षीर विवेक के पन्नों से
गुलाब की ताज़ा ख़ून वाली पंखुड़ियाँ।
तीन सितारा लाल झँडे से निकल
खेतों में भ्रमण करने लगा है...
...इससे पहले कि सूरज की धारदार रोशनी इस जादू को हर ले
मैंने कैद कर लिए स्मृति की सबसे सुरक्षित स्नायु तंत्र में...
और ज्यों का त्यों आप तक पहुँचा रहा हूँ...
- रचनाकार : मनोज मल्हार
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.