डरे हुए आदमी का शब्दकोश
Dare hue adami ka shabdkosh
मेरा परिचय एक ऐसे आदमी से है
जिसकी प्रेमिका मेज़ पर पड़ा ग्लोब घुमाती है
तो वो भूकंप के डर से
भागता है बाहर की ओर
पसीने से तरबतर
बाहर खुले मैदान नहीं हैं
बाहर लालची जेबें हैं लोगों कीं
जेब में ज़बान है और मुँह में पिस्तौलें
बाहर कहीं आग नहीं है
मगर बहुत सारा धुआँ है
गाड़ियों का बहुत सारा शोर है
जैसे पूरा शहर कोई मौत का कुआँ है
मेरा परिचय एक ऐसे आदमी से है
जो शहर में अपनी पहचान बताने से डरता है
और गाँव में अब कोई पहचानता नहीं है
सिर्फ़ इसीलिए बचा हुआ है वह आदमी
कि नहीं हुए धमाके समय पर इस साल
कि कुछ दिन और मिले प्यार करने को
कुछ दिन और भूख सताएगी अभी
उसने हाथ से ही उखाड़ लिया है
दाईं ओर का आख़िरी दुखता दाँत
सही समय पर दफ़्तर पहुँचना मजबूरी है
और दानव डॉक्टर की फ़ीस से बचना भी ज़रूरी है
दुखे तो दुखे थोड़ी देर आत्मा
बहे तो बहे थोड़ी देर ख़ून
अपरिचित नहीं है ख़ून का रंग
अभी कल ही तो कूदा था एक स्टंटमैन
पंद्रह हज़ार करोड़ में बने एक मॉल से
और उसकी लाश ही वापस आई थी ज़मीन पर
पंद्रह हज़ार के गद्दे बिछे होते ज़मीन पर
तो एक स्टंटमैन बचाया जा सकता था
मगर छोड़िए, इस बेतुकी बहस को
कविता में जगह देने से
शिल्प बिगड़ने का ख़तरा है।
तो सुनिए, इस बुरे समय में
एक डरे हुए आदमी के शब्दकोश में
लोकतंत्र किसी दूसरी ग्रह का शब्द है
तो सुनिए, इस बुरे समय में
एक डरे हुए आदमी के शब्दकोश में
लोकतंत्र किसी दूसरे ग्रह का शब्द है
जिसका अर्थ किसी हिंदू हिटलर की मूँछ है
और उसके दाँतों से वही महफ़ूज़ है
जिसके शरीर पर जनेऊ है
और पीछे एक वफ़ादार पूँछ है
डरा हुआ आदमी सड़क पर देखता सब है
कह नहीं पाता कुछ भी शोर में
सड़क पर जल उठी लाल बत्ती
एक भूखा, मासूम हाथ
काले शीशे के भीतर घुसा
भीतर बैठे कुत्ते ने काट खाया हाथ
कब कैसे पेश आना है
ख़ूब समझते हैं एलीट कुत्ते
एक डरे हुए आदमी के शब्दकोश में
गाँव सिर्फ़ इसीलिए सुरक्षित है
कि वहाँ अब भी लाल बत्ती नहीं है
दरअसल उस डरे हुए आदमी की ज़िंदगी
भिखारी की फटी हुई जेब है
ख़ाली हो रहे हैं दिन-हफ़्ते
और भरे जाने का फ़रेब है
एक डरे हुए आदमी की ज़िंदगी
उस आदिवासी औरत के पेट में
पल रहे बच्चे का पहला रुदन है
जो गाँव की सब ज़मीन बेचकर
पालकी में लादकर
ऊबड़-खाबड़ रास्तों से लाया गया
शहर के इमरजेंसी वार्ड में
जिसने एक बोझिल जन्म लेकर आँखे खोलीं
ख़ूब रोया और मर गया
उस डरे हुए आदमी के दरवाज़े पर
हर घड़ी दस्तक देता बुरा समय है
जो दरवाज़ा खुलते ही पूछेगा
उसी भाषा, गाँव और जाति का नाम
फिर छीन लेगा पोटली में बँधा चूड़ा-सत्तू
और गोलियों से छलनी कर देगा
इस बुरे समय की सबसे अच्छी बात ये है कि
एक डरा हुआ आदमी अब भी
सुंदर कविता लिखना चाहता है।
- रचनाकार : निखिल आनंद गिरि
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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