अक्षर
हम सब अक्षर हैं
अक्षर हरे काग़ज़ पर हों या सफ़ेद पर
खुरदरे में हों या चिकने में
टोपी पहने हों या नंगे सिर
अँग्रेज़ हों या हब्शी
उन्हें लिखने वाला क़लम पार्कर हो या नरसल
लिखने वाली उँगलियों में क्यूटैक्स लगा हो या मेहँदी
अक्षर, अक्षर ही है
शब्द वह नहीं है
अमर होते हुए भी अपने आपमें वह सूना है
अक्षर अर्थ वहन करने का एक प्रतीक है, माध्यम है
अक्षर-अक्षर का ढेर, टाइप-केस में भरा सीसा मात्र है
शब्द बनाता है—अक्षर-अक्षर का संबंध
वही देता है उसे गौरव, गरिमा और गाम्भीर्य
क्योंकि शब्द ब्रह्म है
हम सब अक्षर हैं
और सभी मिलकर एक सामाजिक सत्य को अभिव्यक्ति देते हैं
सत्य जड़ नहीं, चेतन है
सामाजिक सत्य एक गतिमान नदी है
वह अपनी बाढ़ में कभी हमें बहा देती है, बिखरा देती है
कभी नदी बह जाती है
तो घोंघे की तरह हम किनारों से लगे झूलते रहते हैं
इधर-उधर हाथ-पाँव मारते हैं
लेकिन फिर मिलते हैं
शब्द बनते हैं—वाक्य बनते हैं
और फिर नए सामाजिक सूत्र को वाणी देते हैं
क्योंकि मरते हम नहीं हैं
हम अक्षर जो हैं
शब्द बनकर सत्य को समोना हमारी सार्थकता है
वाक्य बनना हमारी सफलता
हमें पढ़ो,
हमारा एक व्याकरण है।
- पुस्तक : आवाज़ तेरी है (पृष्ठ 45)
- रचनाकार : राजेंद्र यादव
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
- संस्करण : 1960
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