चुंबन कोई अपराध नहीं
chumban koi apradh nahin
टंग सकिंग
चूमो!
कि चुंबन ही है
सृजन-प्रक्रिया का प्रथम चरण
होंठों से डालो इमारत की नींव
आँखों के तसले में भरो
एहसासों का सीमेंट,
जीभ से गहो मसल्ला
वैक्यूम किस
चूमो!
कि चुंबन है निरीक्षण की आवश्यक प्रक्रिया
अमानत में सौंपा है
जिसको तुमने अपना दिल
चूम कर करो
अपने-अपने दिल की शिनाख़्त
फूलाकर साँसों से ग़ुब्बारे
थमा दो दिलों के हाथ में
एस्किमो किस
दिलों को कंगुरिया अंगुली पकड़ाकर
घूमा लाओ दिल्ली का मीना बाज़ार
ख़रीदकर फुकना, घड़ी, घिरनी,
हवा मिठाई, समपापरी
उन्हें समझाओ
कि प्रेम को यूँ ही झूलते रहने दें
राम झूले पर
गर रखनी है प्रेम की नाक
तो होने दो साइबेरिया में आग की खेती
निप किस
चूमो!
कि जिसने चुराया है तुम्हारा दिल
जीभ से जीभ पर
रपट लिखने के बहाने
होठों पर जम जाने दो दही
एहसासों की सानकर शक्कर
खाओ होंठों से
हौले-हौले काट-काट कर
हिकी किस
चूमो!
कि चुंबन है ख़ुदा का वरदान
सच्चा प्रेम इनसान को बनाता है ख़ुदा
कुछ यूँ करो रहमतों की बारिश
कि ख़्वाहिशों के इंजेक्शन से कर दो
एक-दूजे को बेहोश
फिर दाँत से काटकर फूँक दो
निर्जीव में जान,
कि पत्थर के सीने से
टपकने लगे लहू
ईयर लोब किस
चूमो!
कि सठने मत दो डिबिया का तेल
नस-नस को करो आवेशित
खेलते रहो साँसों से सुई-धागा
चुराओ कान से ऐसे कनबाली
जैसे बिसपिपरी परोसती हो शहद
फ़्रीज़ॉमेल्ट किस
चूमो!
गर प्रेम जुर्म नहीं है?
गर प्रेम जुर्म नहीं तो यक़ीनन
चूमना कोई अपराध नहीं
भरो मुँह में बर्फ़ के टुकड़े
करो ख़ामोशी से गलगला।
सिप किस
उतार कर दरिया में पनिया जहाज़
उछाल कर मछलियों को आसमाँ में
रचो इंद्रधनुष।
***
प्रेम का फूँको बिगुल
नफ़रत के कटोरे में बरसाओ हरसिंहार!
- रचनाकार : आयुष झा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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