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चोर दरवाज़ा

chor darvaza

तजेंद्र सिंह लूथरा

तजेंद्र सिंह लूथरा

चोर दरवाज़ा

तजेंद्र सिंह लूथरा

और अधिकतजेंद्र सिंह लूथरा

    यहाँ से आगे नहीं जा पाउँगा मैं

    यहाँ सोच भी कुंद है

    और मान्यताओं की गुफ़ा भी बंद

    यहाँ से आगे मुझे रोशनी भी नज़र नहीं आती

    और यहाँ से आगे जाना

    व्यावहारिक भी नहीं होगा।

    मुझमें ताक़त ही नहीं बची है

    या मुझे बचपन से ही

    ठीक से चलना नहीं सिखाया गया है

    कसूर किसका है बहस बेकार है।

    अब दो ही विकल्प बचे हैं मेरे पास

    या तो यहीं खड़ा रहूँ अड़कर

    जो भी हूँ जैसा भी हूँ बनकर

    और या झुककर

    लेकर चोर दरवाज़ा

    पहुँच जाऊँ सबसे आगे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : तजेंद्र सिंह लूथरा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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