चिड़िया अपनी चोंच से पीली धूप के लिए कविता लिखती है
chiDiya apni chonch se pili dhoop ke liye kavita likhti hai
श्रीधर करुणानिधि
Shreedhar Karunanidhi
चिड़िया अपनी चोंच से पीली धूप के लिए कविता लिखती है
chiDiya apni chonch se pili dhoop ke liye kavita likhti hai
Shreedhar Karunanidhi
श्रीधर करुणानिधि
और अधिकश्रीधर करुणानिधि
और एक आदमी पके फल की तरह गिरता है...
तो भाइयो!
कविता कभी पूरी नहीं हुई, न होती है और न होगी
कोई भी लिखे
उसे जब पूरा नहीं होना है तो नहीं होना है
एक पके हुए फल में
तब्दील होकर एक आदमी
पहले हरा फिर
शाम को
धूप सहकर पीला हो आए पपीते की तरह
चिड़िया के चोंच लगाते ही गिर जाए
जितना, उतना भर थोड़ा-सा हरा
उसकी अबूझी आवाज़ से
थोड़ा तर ज्यों नींबू का शर्बत गटककर
एक मीठी आह भरता हुआ...
वो धूप नहीं एक आम आदमी
जो थक जाता है थककर
और फिर
धूप का ही इंतज़ार करता है
अँधेरे से ऊबकर
एक ऊबा हुआ आदमी
अँधेरे से ऊबकर अँधेरा नहीं
धूप ही ढूँढ़ता है
जो पीली ही है सुबह तक भी
चिड़िया की चोंच से खोदे जाने के इंतज़ार में
जो कविता लिखती है रोज़ अपनी चोंच से
आदमी से पूछो तो कहेगा
वो चिड़िया की चोंच पर कविताएँ लिख रहा है
धूप से पूछो तो कहेगी
उसने धरती को एक लंबी और कभी ख़त्म नहीं होने वाली
कविता के रूप में लिख दिया है...
चिड़िया से भी पूछो भई!
- रचनाकार : श्रीधर करुणानिधि
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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