छोटी बातों पर प्रधानमंत्री
chhoti baton par prdhanmantri
मैं कई बार सोचता हूँ कि
कितना अच्छा होता कि हमारे प्रधानमंत्री
कभी-कभी छोटी-छोटी बातों पर हमसे रू-ब-रू होते
हम साथ बैठते और वे हमसे और हम उनसे पूछते
घर का हाल, उनकी तबीयत, उनके सुख ही नहीं
उनके मन के भीतर बैठे उनके दुख का भी हाल
हम यूँ ही साथ बैठते
और यूँ ही करते हँसी-ठट्ठा
बाँटते आपस मे छोटी-छोटी ख़ुशियाँ
वह हमसे पूछते कि बिटिया सुबह इस कड़ाके की ठंड में
स्कूल जाते वक़्त क्या जग जाती है नींद से
आठ महीने की छोटी बिटिया ने क्या निकाल लिए
कोंपल जैसे अपने दाँत
हम उनसे पूछते कि इस बात में कितनी सच्चाई है कि
वे जो खाना खाते हैं, क्या वाक़ई वे चखे जाते हैं
कई लोगों द्वारा कई-कई बार
वे चाहते तो हमें दिखाते अपनी कुर्सी, अपना बिस्तर
और अपनी वह क़लम जिससे उन्होंने किए हैं दस्तख़त
कई-कई ज़रूरी काग़ज़ातों पर
अपने घर पर ख़ुश होकर हम दिखाते उन्हें अपनी गुल्लक
अपनी हवा, अपना पानी
और अपनी पत्नी के चेहरे की हल्की-सी मुस्कान
प्रधानमंत्री इस देश के सबसे व्यस्ततम नागरिक हैं
इसे स्वीकार करने में हमें कोई संदेह नहीं है
परंतु सोचने को यह सोचा जा सकता है कि
कितना अच्छा होता अगर
प्रधानमंत्री कभी चुपके से आ जाते
मेरी बिटिया के तीसरे जन्मदिन पर
और मेरी बिटिया से तोतली आवाज़ में कहते
हमें भी तो अपनी लेलगाड़ी दिथाओ
या कभी शामिल ही हो जाते हमारी बहन की शादी में बिन बताए
हमारे लोकतंत्र का मुखिया
यूँ हमारी छोटी-छोटी ख़ुशियों में शरीक हो जाएँ
इस लोकतंत्र में ऐसा सोच लेना भर भी कितना सुखद है
लेकिन इसे आप तब ज़्यादा महसूस करेंगे
जब आप इसे एक ख़्वाब का बिंब देंगे
मैं अख़बारों में, टी.वी. पर रोज़ देखता हूँ
कई-कई ऐसी ख़बरें कि कोई जूझ रहा है
अपने ही वजूद से, कि कैसे कोई गिरता ही चला जा रहा है
अपने बच्चों के पेट को पालने के लिए
अब मैं अपने गाँव की मनिया की ही क्या सुनाऊँ
कैसी नरकंकाल-सी हो गई है भूख से
अपने पति और अपने बच्चों के मरने के बाद
मैं कई बार सोचता हूँ न सही मनिया
किसी के साथ तो कभी अचानक से आकर खड़े हो जाएँ प्रधानमंत्री
कितना अजीब लगेगा उस दिन
जब न्याय के लिए दर-दर भटकती उस लड़की के साथ
प्रधानमंत्री अपनी आवाज़ मिला दें और कहें
तुम्हारी आवाज़ दूर तलक पहुँचनी ही चाहिए
तभी बचेगा साबुत यह लोकतंत्र
कितना अजीब लगेगा जब अपने पूरे कार्यकाल में
प्रधानमंत्री कम से कम एक बार इस बात को भूलकर
निर्णय ले लें कि इस निर्णय से
कितना फ़र्क़ पड़ता है उनके वोट बैंक पर
कम से कम एक बार कह दें
कि यह कुर्सी सिर्फ़ इसलिए नहीं है कि हम बने रहें सौदागर
कम से कम एक बार कह दें कि
बिग एप्पल के सामने ठेला लगाए बैठी
उस उदास औरत की उदासी का हक़ उसे मिलना ही चाहिए
कम से कम एक बार कह दें
कि अगर इस बार खेत में प्याज़ की पैदावार ज़्यादा हुई
तो हम उसे सड़ने नहीं देंगे खेत में
और दबने नहीं देंगे किसानों के ख़्वाबों को मिट्टी के बहुत नीचे
कितना अजीब लगेगा
कितना अजीब लगेगा यह सब
लेकिन मैं जानता हूँ यह सब कविता में ही संभव है
मैं यह भी जानता हूँ कि आप पढ़ेंगे इस कविता को
और कहेंगे पता नहीं क्या-क्या लिखते हैं
आज के कवि अपनी कविता में
आप कहेंगे ऐसा कुछ क्या
इसका एक पसंगा भी नहीं होने वाला अब इस देश में।
- रचनाकार : उमाशंकर चौधरी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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