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चौथा खंभा

chautha khambha

राज्यवर्द्धन

राज्यवर्द्धन

चौथा खंभा

राज्यवर्द्धन

और अधिकराज्यवर्द्धन

    मेरे दोस्त!

    मक्खनबाज़ी की हद है

    क्या तुम्हें नहीं पता कि

    तुम्हारी बातें

    इतिहास में दर्ज हो रही हैं

    वर्तमान में चेहरे पर

    इतना भी कालिख मत मलो कि

    भविष्य में चेहरा दिखाने के क़ाबिल रहो

    माना कि अभी सत्ता के साथ तुम्हारे समीकरण हैं

    पाँचों उँगलियाँ घी में डूबी हैं

    पर सत्ता तो सोलहों कलाओं में निपुण

    कूटनीति राजनीति के महानायक कृष्ण की भी नहीं रही

    अपने ही अंतर्विरोध में

    समूल नाश हो गई

    तो कैसे मान लिया कि जिस सत्ता के साथ तुम्हारे गठजोड़ है

    वह सत्ता तुम्हारे मरते दम तक रहेगी

    एक दिन तो निकलना होगा जनपथ पर

    तब जनता दिखाएगी तुम्हें तुम्हारा चेहरा

    और पूछेगी—

    जब रोम जल रहा था

    तब तुम किसके कहने पर बजा रहे थे बंसी

    याद है तुम्हें—

    सत्ता की एक महानायिका का कथन

    जो तुम जैसों के लिए ही कही थी—

    मैं झुकना को कहा था

    वे रेंगने लगे

    रेंगनेवाले बिना रीढ़ के होते हैं

    चाटुकरिता पसंद भी

    करते हैं सम्मान

    रीढ़वाले का

    इतिहास गवाह है

    चाटुकारिता में

    जो लोग रेंग रहे थे

    वे कहाँ हैं?

    और जो तने हए हुंकार रहे थे—

    सिंहासन ख़ाली करो

    कि जनता आती है।

    वे कहाँ हैं?

    मेरे दोस्त!

    थोड़ा भी शर्म करो।

    स्रोत :
    • रचनाकार : राज्यवर्द्धन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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