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चौखट

chaukhat

शिवम चौबे

और अधिकशिवम चौबे

    बुज़ुर्गों जितनी उम्र पा गए घर में

    दरवाज़ों के खुलने और बंद होने के

    निकटतम गवाह की तरह

    उपस्थित है चौखट

    दो अलग-अलग दुनियाओं के

    ठीक बीच यह इतनी ही चौड़ी है

    कि इसे लाँघते ही बदल जाते हैं युग

    स्त्रियाँ पतित हो जाया करती हैं

    और पुरुष घरघुसरू

    ऐसा बुज़ुर्ग मानते रहे।

    चौखट जो एक कदम में पार की जा सकती है

    नहीं पार हो पाती कई-कई बरस

    कई-कई बरस बाद बच्चे खेल-खेल में

    बनाते हैं उसे रेलगाड़ी

    उससे उतरते हैं और चले जाते हैं

    अनजानी यात्राओं की ओर

    वे पलट के नहीं देखते

    रेलगाड़ी हुई चौखट को

    पतित और घरघुसरू के

    उलाहनों के बीच से

    ग़ायब हो जाते हैं वे

    अपनी रेलगाड़ी के साथ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शिवम चौबे
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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