चार प्रेम कविताएँ : केवल डायरी के लिए
chaar prem kawitayen ha kewal Diary ke liye
जगदीश चतुर्वेदी
Jagdish Chaturvedi
चार प्रेम कविताएँ : केवल डायरी के लिए
chaar prem kawitayen ha kewal Diary ke liye
Jagdish Chaturvedi
जगदीश चतुर्वेदी
और अधिकजगदीश चतुर्वेदी
प्रेमिका नंबर 1
(इ. के लिए)
एक उजला आकाश थीं तुम
और तुमने एक छोटे वृक्ष-सा
मुझे पूरा का पूरा ढँक लिया था :
सच, तुम मेरी माँ थीं!
प्रेमिका नंबर 2
(श. के लिए)
तमाम रिश्तों से परे
मुझे अच्छी लगती थीं तुम्हारी आँखें,
देह-गंध तुमने मुझे दी
तुम शारदीया आकाश थीं
और मैंने पहली बार प्यास का महत्त्व जाना था :
सच, तुम प्राण-जल थीं!
प्रेमिका नंबर 3
(र. के लिए)
तुम केवल एक नारी थीं
और मैं आदिम तृष्णा से तुम्हें चाहता था
मैं गिलहरी के बच्चे-सा
निरीह ही रहता
जो तुम न देतीं
अपने बिल्व-मंगलों का सान्निध्य:
सच, तुम मेरी आंगिक क्षमता थीं!
प्रेमिका नंबर 4
(क. के लिए)
तुम मुझसे बहुत वर्ष छोटी थीं,
पर तुम्हें देखकर उग आते थे गुलाब—
हरे, नीले, पीले
तुम्हारे हाथों में मैं ढूँढ़ता था भविष्य :
तुम मेरी संभावना थीं!
- पुस्तक : विजप (पृष्ठ 69)
- रचनाकार : जगदीश चतुर्वेदी
- प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
- संस्करण : 1967
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