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बुद्धिजीवी

buddhijivi

परमानंद श्रीवास्तव

और अधिकपरमानंद श्रीवास्तव

    नाउम्मीदी की बारिश हो रही है

    झमाझम बरस रहा है

    दुनिया को हताश करने वाला

    पानी

    जब हो रहा है यह सब

    पहले से क्रूर होती जा रही

    आज की दुनिया में

    वे पानी को

    जगह-जगह से

    पीट रहे हैं

    ढलती हुई सदी के लोगो,

    यह बचपन में सुना हुआ मुहावरा है

    माँ से

    तनिक झिड़की के साथ

    सुना हुआ मुहावरा

    कभी लताड़ के साथ

    जब हमारी बस्ती पर

    पहला बम गिरने वाला था

    मुझे किटी को

    बड़ी जिज्जी

    या छोटे दादा को

    किसी को पता नहीं था तब तक

    क्या होता है गिरने वाला बम

    क्या वह फल की तरह टपकता है

    सीधे आसमान से

    या चू पड़ता है चुपचाप

    हरसिंगार के फूल की तरह

    क्या राख हो जाती है दुनिया

    उसके गिरने से

    या लहलहा उठती है

    बेर या करौंदों से

    कभी हम सहमते

    कभी ख़ुश होते

    कि एक एक दिन

    ज़रूर देखेंगे

    बम का गिरना

    अपनी बस्ती पर

    हमारी उड़ानें

    ख़त्म ही होने को आती थीं

    तभी सुना था यह मुहावरा

    माँ से

    तनिक कोफ़्त के साथ

    मतलब जिसका

    मैं अब जान पाया हूँ

    साल के इस आख़िरी दिन

    जब एक लंबे कुहराम के बाद

    सन्नाटा छा गया

    वायुमंडल में और

    सदन के पटल पर

    और फिर शुरू हो गई

    नाउम्मीदी की बारिश

    बरसने लगा

    झमाझम

    दुनिया को

    हताश करने वाला

    पानी

    और पीटने लगे वे

    उसे जगह-जगह से

    स्रोत :
    • पुस्तक : चौथा शब्द (पृष्ठ 99)
    • रचनाकार : परमानंद श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 1993

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