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पुल पर औरत

pul par aurat

रंजना मिश्र

रंजना मिश्र

पुल पर औरत

रंजना मिश्र

और अधिकरंजना मिश्र

    इस बार

    प्रेम करूँगी तो डूबकर करूँगी

    नहीं रखूँगी कुछ भी अपना

    बस सौंप दूँगी

    सब कुछ, निडर

    झूल जाऊँगी हवा के

    हिंडोले में

    घाटियों से फिसलूँगी

    ऊपर और ऊपर

    उड़ूँगी

    अपने भीतर

    लगी सारी साँकलें

    खोल दूँगी

    कई जन्मों से

    प्रेम को रोक रखा है

    मैंने

    अपने भीतर

    कोख और कुल की चौखट में क़ैद

    प्रेम की परिभाषाएँ बूझती आई हूँ

    उन पर अमल किया है

    देखो ना

    चलते-चलते

    पाँवों पे छाले उभर आए हैं

    ख़ून रिसता है इनसे

    पुल तक पहुँची हूँ

    सदियों से इसी पुल पे खड़ी

    नीचे पानी की

    गहराई

    नापती सोच में डूबी

    तुम्हारा इंतज़ार करती हूँ

    नहीं बस और नहीं

    अब जाना ही है मुझे

    लहरें अपने पाँव पर महसूस करनी हैं

    बालों को भिगोना है

    उमड़ती-गरजती बारिश में

    मेरा प्रेम समझ पाओ तुम

    तो लौट जाओ

    अपने घर

    अपने छल की ओर

    वहाँ ख़ुद को थोड़ा छोड़ आई हूँ

    जानती थी

    लहरें तुम्हें डराएँगी

    और तुम वापस जाओगे

    छोड़कर मुझे

    पुल पर खड़ी

    कभी पाना मुझे

    सदियों बाद

    मुझे स्वीकार है

    इस पुल का अकेलापन

    अधूरापन

    अब मुझे स्वीकार नहीं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रंजना मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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