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बोरसी

borasi

शरद रंजन शरद

और अधिकशरद रंजन शरद

    कुछ अनोखी है

    सुबह की लाली

    शाम की भी

    ज़रा अलग हटकर

    अलहदा है

    दुपहर

    सही बात तो यह

    कि हर पहर

    अँधेर में भी

    कुछ-कुछ अँजोर

    नींद से बँधी सपने की डोर

    अतल तह में कहीं

    परत दर परत

    जीवन भरी जोत

    सारे क्षण मिनट घंटे-दिन

    माह-साल-युग-कल्प

    अपनी तरह जलते अलख

    है यही रोशनी

    समय के सूत में लिपटी

    इसका एक-एक भाग

    आग का सधा हुआ राग

    जैसे यह हर ओर से

    सभी छोर से

    कह रही हो

    जा रही है आँच

    क्या कल के लिए

    जुगा ली है लौ...?

    स्रोत :
    • रचनाकार : शरद रंजन शरद
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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