एक
ख़ूब कंजूस होते हुए भी
उन्होंने मुझे ख़रीदकर दी थी पुस्तक :
'महाभारत के कुछ आदर्श पात्र'
और वे चाहते थे कि कर्ण मेरा आदर्श न हो
कवच-कुंडल दान देना नहीं, छीन लेना सीखूँ
द्वापर में काम बनता न देख
वे मुझे ले गए त्रेता युग में
राम के जीवन का ध्येय बताया
फिर मेरी चाल-ढाल देखकर चिंता जताई
कि ईमानदार होकर
मैं जीवन में कुछ नहीं कर पाऊँगा।
दो
बड़े सिलसिलेवार ढंग से बताई थीं उसने
क़यामत के दिन होने वाली घटनाएँ
मेरी निरपेक्षता को झुकाव मान
वह मुझे आग से बचा लेने पर आमादा था
और सवाब के तौर पर रखता था उम्मीद
कि वह ख़ुद भी हो जाएगा महफ़ूज़
उसके प्रिय अदाकार, गायक, कॉमेडियन
सहधर्मी थे सब उसके
और वह सख़्त ख़िलाफ़ था
बच्चों और बच्चियों के आपस में बात करने के
वास्तविकता में ही नहीं, परिकथाओं में भी।
तीन
वे अपनी पत्नी को अमृत पान करा लाए थे
और स्वयं एक दूसरे द्रव्य का सेवन करते थे
पत्नी बचती फिरती थी उनके मादक स्पर्श से।
चार
उस कैथोलिक पादरी ने स्वीकारा था
कि रूढ़ियों-बेड़ियों से उकताकर
हुआ था पुनर्जागरण
और जोड़ दिया था तुर्रा यह
कि प्रोटेस्टेंट वाक् पटु होते हैं
बरगला देते हैं भोले-भाले लोगों को!
__________
* हर धर्म में कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं जो उस धर्म के सही प्रतिनिधि नहीं होते। यह कविता कुछ ऐसे उदाहरणों के बारे में है। यह कवि हर धर्म का सम्मान करता है और कविता का उद्देश्य किसी को चोट पहुँचाना नहीं है।
- रचनाकार : देवेश पथ सारिया
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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