समय के साथ जीवन में भीड़ बढ़ती जा रही है।
एक छोर का जीवन दूसरे छोर तक
पहुँचना चाहता है पर
दूसरे छोर के पार होने का मतलब है
व्योम के उस पार जाना।
भीड़ की प्रवृत्ति है बेवजह का दबाव बनाना
आप भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहते
आप भीड़ से अलग भी नहीं होना चाहते
भीड़ की अपनी शर्ते अपने नियम होते हैं
उन शर्तों को नहीं मानने पर
निश्चित है भीड़ आपको मार देगी
किंतु आप तो मरना भी नहीं चाहते
आपमें असीम जिजीविषा है
बेहतर है
भीड़ का हिस्सा बने बिना उसमें खो जाइए!
इन शब्दों की तरह ही
जीवन का आकार भी छोटा-बड़ा है
सिर्फ़ बड़ा बनकर
बड़े रास्तों पर चलकर ही
बड़ा नहीं बना जाता!
- रचनाकार : नेहा अपराजिता
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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