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भय अतल में

bhay atal mein

महेश चंद्र पुनेठा

और अधिकमहेश चंद्र पुनेठा

    अपनी बड़ी बहन बग़ल में

    सहमा-सहमा बैठा मासूम बच्चा

    जैसे छोटी-सी पूसी

    ताकता, टुकुर-टुकुर मेरी ओर

    ढूँढ़ रहा किसी अपने परिचित चेहरे को

    पहला दिन है उसके स्कूल का

    मालूम है मुझे—

    बोलूँगा अगर कड़कती आवाज़ में

    भीतर बैठ जाएगा उसके भय अतल में

    और फिर निकल पाएगा

    मालूम है मुझे

    मेरा दाँत पीसना

    कठोर मुख मुद्रा बनाना

    या छड़ी दिखाना

    जिज्ञासु बच्चे को

    मजबूर कर देगा

    मन मसोस कर बैठे रहने को

    घोंट देगा गला जिज्ञासाओं का

    भर देगा कुंठाओं से

    यातना शिविर की तरह

    लगने लगेगा उसे स्कूल

    होने लगेगा पेट में दर्द

    स्कूल को आते समय।

    पर भूल जाता हूँ मैं

    यह सारी बातें

    अवतरित हो जाता है—

    दुखहरन मास्टर

    भीतर तक

    खड़ा होता हूँ जब

    पाँच अलग-अलग कक्षाओं के

    सत्तर-अस्सी बच्चों के सामने।

    स्रोत :
    • रचनाकार : महेश चंद्र पुनेठा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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