भागो भागो अब काल पडा है भारी
bhago bhago ab kal paDa hai bhari
बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
Badrinarayan Chaudhary 'Premghan'
भागो भागो अब काल पडा है भारी
bhago bhago ab kal paDa hai bhari
Badrinarayan Chaudhary 'Premghan'
बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
और अधिकबदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
भागो-भागो अब काल पडा है भारी।
भारत पै घेरी घटा बिपत की कारी॥
सब गये बनज व्यापार इतै सो भागी।
उद्यम पौरुष नसि दियो बनाय अभागी॥
अब बची-खुची खेती हूँ खिसकन लागी।
चारहुँ दिसि लागी है महँगी की आगी॥
सुनिये चिलायँ सब पराज भई भिखारी।
भागो-भागो अब काल पड़ा है भारी॥
हम बनज करैं पर उलटी हानि उठावैं।
हम उद्यम करके लागत भी नहिं पावैं॥
हम खेती कर बेंग बिसार गँवावैं।
औ करजा कै सरकारी जमाँ चुकावैं॥
फिर खाय कहाँ से यह नहिं जाय विचारी।
भागो-भागो अब काल पड़ा है भारी॥
हम करैं नौकरी बहुत, तलब कम पाते।
ये किसी तरह से अब तक पेट जिलाते॥
इस महँगी से नित एकादशी मनाते।
लड़के वाले सब घर में है चिल्लाते॥
है देखो हाहाकार मचो दिसि चारी।
भागो-भागो अब काल पड़ा है भारी॥
अब नहीं यहाँ खाने भर को भी जुरता।
नहिं सिरपर टोपी नहीं बदन पर कुरता॥
है कभी न इसमें आधा चावल चुरता।
नहिं साग मिले नहिं कंदमूल का भुरता॥
नहिं जात भूख की भई पीर सभारी।
भागो-भागो अब काल पड़ा है भारी॥
- पुस्तक : कविता-कौमुदी, दूसरा भाग-हिंदी (पृष्ठ 38)
- संपादक : रामनरेश त्रिपाठी
- रचनाकार : बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
- प्रकाशन : हिंदी-मंदिर, प्रयाग
- संस्करण : 1996
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