एक
इस मेले में आएँगी हम
बनखेड़ा की भायलियाँ
पहन के सुरमई रंग का
लूगड़ा-घाघरा
पहचान तो लेगा न तू मुझे
हिरणकाँटे के पटेल के छोरे?
ठीक दूसरे पहर पर हम
उतरेंगी ज्वाल टेकरी से
घुमड़ती सुरमई बदलियों-सी
मैं बीच में होऊँगी
काका बाबा की बड़ी बहनों के पीछे
छोटकियो के आगे
भाभियों से हटके
पिछले मेले से बदल गई है रे
मेरी काठी
इस बार बुवाया है नाज बाई ने
छुएगा हथेली तो जान लेगा
मुझे डर है कि तू पहचानेगा
इस बार बुवाई में बिक गया है
मेरा सतरंगी फुंदनिया कंदौरा
भाई के ब्याव में ज्यों बिके थे
चाँदी के हथफूल
मगर
मेरी आँख का तो वही रंग है
कच्चे पक्के शहतूत-सा
पटेल के छोरे
हाँ काँचली के बंद कस गए हैं
रंग खिल गया है मकई-सा
काया में बस गई है महक कनक की
हाय! पैचान लेना!
मुझे पता है लाएगा तू भर कर
जरीकेन में ताड़ी मेरे भाई को
नई फिलिम का कैसेट मेरे काका को
रंगीन चश्मा भतीजे को
मेरे लिए कुछ न लाना
बस तू चला आना
पहन कर लाल क़मीज़ और जीनपेंट
मैं तुझे दूर से पैचान लूँगी
बुल्लट फटफटी पर तेरी दुबली लंबी काठी
चमकेगा फागणी धूप में तेरा पक्का गहरा रंग
बापू को उम्मीद है इस बार
भगौरिया में खा ही लूँगी मैं किसी का पान
मैं नहीं तो बारह साल की छोटकी ही
तब ही छुड़वाएँगे 'झगड़े' से गिरवी गया खेत
पिछली बार के नखरे की माफ़ी
कसम से चूना काटता है जीभ
तू पान नहीं कुल्फ़ी खिलाना
बस निभा लेना रे जिंदगानी
मेरी छाती में धड़-धड़ कर रपट रही है
तेरी बुल्लट, बस पैचान लेना रे!
हिरणांकाँटा के पटेल के छोकरे
सुरमई लूगड़ा याद रहेगा न!
सु र म ई!!
दो
सच बता रे छोरे
मद तेरी आँख में था
कि महुआ में?
मैं तो चुपचाप ऊबी थी गैल में
जब तू बजा रहा था मांदळ गैर में
बाँध कर लाल साफ़ा
पान तो तेरे भायले ने दिया
जिसे मैंने फेर दिया
रंग लगाया था गुलाबी
मेरे गेंहुआ गाल पर विधुर जीजा ने
मैंने मेट दिया था
तूने तो बढ़ा दिया था दोना
महुआ का मैना को
उसने ढोल दिया था वहीं
फिर मैंने क्या पिया था
कौन-सा महुआ
बताता तो जा
नहीं तो वादा कर अगले फागुन के मेले का
मैं तो ऊबी हूँ वहीं जहाँ से निकलेगी ग़ैर
तीन
चल हट! बेईमान
होंगी तेरी गाँव की औरतें कामणी
एक गिलट की बींटी पर दिल हारती
सुन ले!
हर नाचते मोर को
मेरे गाँव की मोरनियाँ नहीं ताकतीं
चल हट!
मुझे तूने गैली समझ लिया क्या
होता हो तेरा खेत बड़ा कालजा बहुत छोटा
लाया गिलट की पाजेब जिसमें ताँबे का जोड़
जा रे छोरे! तेरी कंजूसी का दूजा न कोई जोड़
चल हट!
बहुत मीठे बोल बोलता है तू
सौगन तो पान-सी ज़बान पर रखता है तू
भोला है चेहरा तेरी आँख मगर हिरणी
गैल रोक फालतू बात मुझसे करे
छोटकी मुरूली पर लगे तेरी अंखड़ली
चल भग!
रंहट पर मेरे साथ न चढ़
घूमेगा पहिया मैं डरूँगी बावली
देखेंगे तेरे यार सारे बेकार
नीचे से हँस कर ज़रूर इच कहेंगे
कौए के मुंडे में कचनार की कली
चल हट!
छोड़ मेरा हाथ, मैं न जाऊँ तेरे साथ
तू तमाकू खाने वाला मैं गुलकंद की कली
उस पर तेरी माँ कड़वी कच्च निम्बौली
तेरे जैसे बेईमान के संग हथलेवे से
तो एक और बरस मैं एकली ही भली!
चार
रुक क्यों गई टेसू के नीचे तू एकली?
ओ! कूदी क्यों मौज़ में उतरते टेकरी
ला उतार के दे न, बाल-पिन
जोड़ दूं ये तेरी टूटी पन्हई1
ढक ले रे माथे पे ओढ़ना
मीठा है बायरा मगर
तेज़ है फागुन का तावड़ा
बुरा न माने तो
आजा न मेरी छावलाई2
ला पौंछ दूँ कोर पे फैलता काजल
सीस की मिटड़ी टीकीं (बिंदी) सँवार दूँ
बेनुड़ी! पोशाक तेरी झनक पीली
नखपालिस नीली तूने काय लगाई?
आ चलें पग पग, छाने-छाने
जल्दी क्या है करे जी की बातें
भैरूँबाबा की किरपा से
हो गई पिंचर मेरी भी साईकील
ह' ओ मुझसे क्या डरपना
याद नी क्या
पंचायत के इस्कूल में कूटे थे तूने छोरे
तब से कहाँ उतरा रौब तेरा ए भवानी!
तू तो निकल गई इस्कूल से ही
पन अपन जमे रहे कितने भगौरिए छोड़े
भरा है फ़ारम नौकरी का
अच्छे लम्बर से पूरी कर ली है बारवीं
सुना क तेरा एक लगन... भूल जा,
बेनु! चल पहुँच गए हम, वो री तेरी भायलियाँ
जो सोचना हो इस सोचना इस मेले के बाद
वैसे अपन अब भी अकेले इच हैं
एई सुन... दोफैर ढलते सुरू होगा नाच
वो उधर बजते माँदल की तरफ़ आना
कसम से न पिऊँगा बियर मैं न दूँगा किसी को पान
तू भी तो अपना गाल बचाना, लौटेंगे साथ गाँव
पाँच
व न रा ज
मैं तो न गुदवाऊँ तेरा नाम
कलाई पर
मै ना व ती
क्या तू गुदवा लेगा मेरा नाम?
एक पान
मुट्ठी भर गुलाल
और जबरन थाम लेने से हाथ
चल जाता है क्या काम?
'झगड़ा' का पैसा माँगेगा मेरा काका
पूरे दो लाख
और पचास तोले चाँदी
गाड़ी भर नाज
ब्याह के जीमण को भर भर महुआ
दस बकरे कहाँ से लाएगा?
मीठी है तेरी तान
नाच में है मस्तानी ताल
मूँछ में भी है बाँक
आँख में है गहरी-सी प्यास
जानती हूँ उमंग रंगीन है
तेरे साफ़े जैसी
तेरे चश्मे जैसी
जिंदगी को रंग दे पाएगा?
भगा तो लेगा आज
बता ब्याह कब रचाएगा?
मेरी मासी की नाईं,
चार बच्चों के बाद भी
ब्याह के जीमण को तो नहीं तरसाएगा?
सोच ले बरस अगले कान में मुरकी पहन
रंगीन फुंदना3 लगा कर कहाँ नाच पाएगा!
छह
वह लड़की नहीं थी
कोई भूलभुलैय्या थी
पैले कभी नी देखा उसे
किस खेड़ी की थी, कौन-सा था गाँव
सुनहरा रंग और हरी थी आँख
पकते कनक के खेत से
निकल कर आई थी
उसके गात पर लगे थे तिनके
हाथ में थी फूल छड़ी टेसू की
महुआ में धुत्त छोरों को दूर करती चली
कसूम्भी लुगड़े वालियों की टोली के आगे
मैं तो पीपल नीचे बाँधता था पीली पाग
जादूगरनी!
डाल कर एक मीठी नज़र कहाँ गई भाग?
अब मैं हूँ कि यह भीड़ है!
वह कहाँ है?
हर झूला देख आया
मनिहारिन की दुकान पर बैठ आया
माँदल-नाच के आगे देखे कसूम्भी लुगड़े
दो चार घूँघट झाँक आया
खा आया गालियाँ, दो धौल भी
गई तो कहाँ गई वह
भूतनी थी क्या उस बरगद की
जहाँ शर्त लगा कर गाड़ी थी कील
कि भूत वूत नहीं होते कह कर
कर गई एक नज़र में परवश!
कुछ तो ख़ास उसका करूँ याद
एक पल जो भी देखा था
उसने डाली थीं गले में चाँदी की जेवड़ियाँ
हाथ में गजरे और हथफूल
हिश्श हर छोरी तो यही पहने है
मंगलिए! सोच कुछ ख़ास!
अं हाँ! वो लाल मोती वाली नथ!
और! बाँह पर बँधा भैरूँबाबा का तावीज़!
ओ बावजी! ये लोग हैं कि समंदर
कहाँ खोजूँ नाक की नथ का लाल मोती?
मंगलिए! ओ गेल्यै! वो लड़की है कि अफ़ीम?
चढ़ी है भेजे में तो उतरती क्यों नहीं?
रख लिया गुलाल! बंसी की दुकान का पान
बस मिल जाए, कहूँगा कुछ नहीं
थाम कर बाँह, पकड़ा दूँगा पान
कहे तो कहे बापू होने देता बड़े भाई का ब्याव
याद कर रे! जान-पहचान वाली
कौन-कौन साथ थी उसकी सहेलियाँ
उसकी एक सहेली के आगे संभू हँसा था
ए संभू! बता न कौन थी क्या तो ठाँव था
क्या, मेरे ही गाँव की?
चि त लि या?
गज्जब मेरे यार,
मैंने सोचा थी होगी परी दूर देश की
मेंड़ पार के खेत की चिड़कली निकली
कल तक खेलती थी चिंगा पो
आज नाचने भगौरिया निकली!
- रचनाकार : मनीषा कुलश्रेष्ठ
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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