बेटी बदे आस निहोरा
beti bade aas nihora
तोहके तरसेला हमरी दलान सुगिया
हमरो छतवा पे उतरेला चान सुगिया।
चार ऋतुअन के घर अगवानी हवे
आँख में ई पीरितिया के पानी हवे
अइतू लोरी के लिहले उठान सुगिया
राहि देखत के कुहुके परान सुगिया…
झारि आसन देती बिठवती तोहे
हाथ से रीन्हि खैका खिअवती तोहे
आँख के तू पुतरिया ई मान सुगिया
एक तोहरे बिना घर मकान सुगिया...
चिर अन्हरिया बुझाला पूरा घरा
टेरे तोहरे बदे सगरो अन धन भरा
बनके दियरी तू कइ द विहान सुगिया
मोर अरजिया प दे द धेयान सुगिया
- रचनाकार : आकृति विज्ञा 'अर्पण’
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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