Font by Mehr Nastaliq Web

बेहाल पक्षियों पर शातिर नज़रें

behal pakshiyon par shatir nazren

लक्ष्मीकांत मुकुल

लक्ष्मीकांत मुकुल

बेहाल पक्षियों पर शातिर नज़रें

लक्ष्मीकांत मुकुल

और अधिकलक्ष्मीकांत मुकुल

    चिड़ियों के दल उड़ान भरते है पंखों से 

    आकाश की दूरियाँ मारते हुए

    अंचलों, देशों की सरहदें लाँघते खोजते हुए स्वच्छंद दुनिया

    उनकी यात्राओं में शामिल होते हैं

    ऊँचे पेड़, पहाड़, झाड़ियाँ उनकी दोस्ती होती है गिलहरियों, गिरगिटों से

    वे उड़ते हैं भोजन की तलाश में तो कभी अपने हमराह को खोजने,

    उनके पंखों से बचाता है गतिशीलता का मधुर संगीत,

    उनकी चकचक से उठती है मृदंग की

    असंख्य धुनें तोते की चिकचिकाहट और गौरैये की चहचहाहट से

    चहक उठते हैं हमारे छतों के छज्जे, आँगन की धूल

    आज़ाद विचरण की चाह ने उन्हें पता नहीं होता 

    कि कौन-सा बहेलिया बिछा रहा होता है जाल

    अपनी तिकड़मों, धूर्तताओं की मकड़जाल बुनता हुआ

    पढ़े थे हम बचपन की मनोहर पोथी में 

    शिकारी के जाल को लेकर पक्षियों के ले उड़ने के क़िस्से

    भ्रमजाल फैलाने वाले शैय्यादों की आत्मिक बोल

    पहेलियाँ आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा 

    लोभ से उसमें फंसना नहीं

    पर, भूख-प्यास की मारी चिड़िया फंस जाती है उसके फाँद में 

    चिड़िया जैसे-जैसे समझने लगी है बहेलियों की शातिर चालें चिड़ीमार ढूँढ रहे हैं

    पक्षियों को पकड़ने की नित नई युक्तियाँ वे कब के छोड़ चुके हैं

    दाना-पानी डालने के पुराने घिस तरीक़े,वे करने लगे हैं

    वैज्ञानिकों की तरह नए अविष्कार

    चिड़ियों की जघन्य हत्या करने की कारगर उपकरण 

    वे गुलेल और एयरगन के उपयोग को मानने लगे हैं

    पंछीघात करने वाले पिछड़े पड़ चुके औज़ार 

    आखेटक बंसी में मरे चूहों को फंसाकर

    पकड़ने लगे हैं फुर्तीले 'वाक' को 

    तीतरों को चहेटकर पकड़ रहे हैं अहेरी 

    वर्षा-काल की आरंभ में आए बगेड़-झुँड को

    गेहूँ डाँटियों में पीपल के पकाए लासा को लेपकर 

    बकुलियों को टीसी के डंठलों में गोंद चिपकाकर 

    फुदककर उड़ने वाले घाघरों को खेत के ऊपर 

    मछरदानी से ढँककर कचरस धानों को रौंदते हुए 

    हरे पत्तों सरीखे कोमल हरिलों को पीपल, पाकड़,

    बड़ के गोदों में जहर देकर मारने लगे हैं शिकारी

    उजड़ते जा रहे वन्य-प्रांतरों, कटते जा रहे बाग़-बगीचों से

    बेहाल पंछियों पर शातिर नज़रे रखते हैं शिकारी

    वे खोजने में लगी रहती हैं अपना सुरक्षित ठौर ठिकाना 

    जैसे सूख चुकी फसलों के खेतों के बीच में मेड़ों पर 

    लहलहाती हुई बची रहती है दूब की हरियल घासें

    घसियारे की नज़र को ललचाती हुईं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : लक्ष्मीकांत मुकुल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए