उन्होंने मारे
और-और मारे
और-और-और मारे लोग
उन्होंने मारने के काम में
पचास से भी ज़्यादा साल लगा दिए
फिर भी बना नहीं
हाँ जी, बन ही नहीं सका
बेचारों का हिंदू राष्ट्र
उन्होंने रथ चलाए और घर जलाए
उन्होंने मस्जिदें गिराईं और मंदिर बनाए
उन्होंने त्रिशूल उठाए और सरकारें गिराईं
उन्होंने साधु का वेश धरा
उन्होंने राष्ट्रवाद के प्रदर्शन में बिना डोपिंग के
रजत पदक और स्वर्ण पदक जीत लिए
उन्होंने नैतिकता के शंख फूँक कर लोगों के कान फोड़ डाले
उन्होंने मंदिरों में महाआरतियाँ कीं
उन्होंने हत्याकांडों को 'शौर्य दिवस' के रूप में मनाया उन्होंने झूठ के एक से एक शानदार महल खड़े किए उन्होंने भावनाओं की गंगाएँ, यमुनाएँ और यहाँ तक कि सरस्वतियाँ तक बहा कर दिखा दीं
उन्होंने धोखे की समस्त विश्व सौंदर्य प्रतियोगिताएँ जीत लीं
मगर बना ही नहीं
हाँ जी बन ही नहीं सका
बेचारों का हिंदू राष्ट्र
उन्होंने भगत सिंह की बग़ल में हेडगेवार को बैठाया उन्होंने महात्मा गाँधी के पास गोलवलकर के लिए जगह बनाई
उन्होंने बाबासाहेब आंबेडकर के पास
गावतकिया लगाकर
श्यामा प्रसाद मुखर्जी के लिए स्थान बनाया
उन्होंने विवेकानंद को झपटा
सुभाष चंद्र बोस को लपका
उन्होंने कबीर को पटका
नेहरू को दिया क़रारा झटका
मगर बना नहीं
हाँ-हाँ बिल्कुल भी नहीं
हाय-हाय बन ही नहीं सका
हो-हो क्या करें
ये ग़रीब, कोई तो मदद करो
हा-हा यह क्या हुआ रे इनके साथ
हो-हो, हाय-हाय,
हाय-हाय, हो-हो
आह-आह, अरे वाह
बन ही नहीं सका बेचारों का, ग़रीबों का
मुसीबत के मारों का
काली टोपी, केसरिया पटकेवालों का हिंदू राष्ट्र
बताते हैं कि अब वे ग्लोबल टेंडर निकालेंगे
अटल बिहारी उनसे सहमत हैं
कि हाँ यह हुई न कोई बात
ठीक इसी तरह बनेगा हमारा हिंदू राष्ट्र
करो करो और करो करते चले जाओ, ध्वज प्रणाम।
- रचनाकार : विष्णु नागर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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